श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना कुछ गीत अनमने से…)
☆ तन्मय साहित्य # 79 ☆ कुछ गीत अनमने से…. ☆
(मेरे गीत संग्रह “आरोह अवरोह” 2011 से)
कुछ गीत अनमने से कुछ गीत गुनगुने से
स्वर आरोहों अवरोहों के हमने ही चुने थे।
मुखड़ों की सुंदरता बेचैन अंतरे हैं
पद हैं कुछ थके थके कुछ चरण मद भरे हैं
कुछ छंद सयाने से कुछ बंद पुराने से
लय ताल राग सब तो हमने ही बुने थे
कुछ गीत अनमने से….
चिंताओं का चिंतन जब किया अकेले में
हम पीछे छूट गए दुनियावी मेले में
थापें भी दी हमने, सरगम छेड़ी हमने
हमने ही नृत्य किया हम बजे झुनझुने से
कुछ……
जग सोच रहा है क्या चिंता बस यही रही
हमसे खुश रहे सभी मन में बस चाह यही
सब के अनुरूप बने ऐसे थे कुछ सपने
मिल सके ना अर्थ सही सब शब्द अनसुने थे
कुछ……
सातों स्वर के ज्ञाता अनभिज्ञ स्वयं से थे
जब विज्ञ हुए कुछ तो तब दर्प अहम में थे
कुछ बीज उम्मीदों के बोए थे जीवन में
फल फूल रहे हैं वे हो रहे सौ गुने थे
कुछ…….
खुशबू फिर फूलों की शैशव के झूलों की
मुस्कानें बिखरेगी, भोली सी भूलों की
है इंतजार पल छिन अब बदलेंगे ये दिन
पुलकित होगा तन मन नवकृति को छूने से
कुछ….
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈