श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना होकर खुद से अनजाने….. । )
☆ तन्मय साहित्य # 81 ☆ होकर खुद से अनजाने….. ☆
पल-पल बुनता रहता है, ताने-बाने
भटके यह आवारा मन चौसर खाने।
बीत रहा जीवन, शह-मात तमाशे में
सांसें तुली जा रही, तोले – मासे में
अनगिन इच्छाओं के होकर दीवाने
भटके यह आवारा मन …………..।
कुछ मिल जाए यहाँ, वहाँ से कुछ ले लें
रैन-दिवस मन में, चलते रहते मेले
रहे विचरते होकर, खुद से अनजाने
भटके यह आवारा मन ……………।
ज्ञानी बने स्वयं, बाकी सब अज्ञानी
करता रहे सदा यह, अपनी मनमानी
किया न कभी प्रयास स्वयं को पहचाने
भटके यह आवारा मन …………….।
अक्षर-अक्षर से कुछ शब्द गढ़े इसने
भाषाविद बन, अपने अर्थ मढ़े इसने
जांच-परख के, नहीं कोई है पैमाने
भटके यह आवारा मन……………।
रहे अतृप्त संशकित,सदा भ्रमित भय में
बीते समूचा जीवन, यूं ही संशय में
समय-दूत कर रहा प्रतीक्षा सिरहाने
भटके यह आवारा मन चौसर-खाने।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0
मो. 9893266014
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈