डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 80 – साहित्य निकुंज ☆
☆ लघुकथा – सही रास्ता ☆
उषा का आज कॉलेज में पहला दिन था। उसे कुछ अजीब सा लग रहा था और नौकरी लगने की खुशी भी बहुत थी ।
स्टाफ रूम पहुंची सभी ने उसका स्वागत किया।
विभागाध्यक्ष ने उसे टाइम टेबिल दिया । इस वर्ष उसे फाइनल की ही क्लास मिली थी।
आज जब वह क्लास लेने गई तब बच्चों ने उसका स्वागत किया। और एक छात्र सुनील ने तो उसे गुलाब का फूल लाकर दिया और बोला “हार्दिक स्वागत है मेम ।”
उषा ने …”प्यार से थैंक्स कहा।”
उषा पढ़ाने लगी। उषा कई दिन से महसूस कर रही थी कि सुनील का पढ़ने में मन नहीं लगता और वह केवल आंखें फाड़ करके देखता ही रहता है उसे।
रोज कॉलेज छूटने पर कॉलेज के बाहर मिलता है न जाने क्या है उसके मन में ?
शायद यह उम्र ही ऐसी है।
उषा ने सोचा .. कि कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा वरना यह बच्चा अपनी पढ़ाई से हाथ धो बैठेगा।
अगले दिन जब कॉलेज के गेट पर सुनील मिला तो उसने सुनील से कहा .. “मेरे साथ घर चलोगे।”
सुनील खुशी खुशी उषा के साथ घर चला गया।
उषा ने सुनील को बैठाया और चाय नाश्ता करवाया। तब तक उषा के बच्चे भी लौट आए स्कूल से। आपस में मिलवाया। सुनील सभी से मिलकर बहुत खुश हो गया।
बच्चों ने पूछा मम्मी यह “भैया कौन है।”
उषा ने कहा …. “इन्हें तुम मामा कह सकते हो।”
“क्यों सुनील यह रिश्ता तुम्हें मंजूर है?”
सुनील तुरंत मैम के चरणों में झुक गया। बोला.. “आपने मुझे सही मार्ग दिखाया। आपने मेरी आंखें खोल दी।”
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बढ़िया