श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 70 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
ओढ़े चादर ओस की, वसुधा तकती भोर
हो कर शीतल शिशिर में, पवन करे झकझोर
रद्दी में बिकने लगा, देखो अब साहित्य
जुगनू अब यह समझता, फीका है आदित्य
कर आराधन देश का, रखें देश हित सोच
संकट में कुर्बान हों, बिना कोई संकोच
अविरल धारा प्रेम की, दिल में बहती रोज
सच्चे सेवक राम के, जिनमें रहता ओज
उन्नत खेती कीजिये, चलें वक्त के साथ
उपज खेत की बढ़ सके, हो दौलत भी हाथ
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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