डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के जैन महाविद्यालय में सह प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, स्वर्ण मुक्तावली- कविता संग्रह, स्पर्श – कहानी संग्रह, कशिश-कहानी संग्रह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज  प्रस्तुत है  एक विचारणीय कहानी दिव्यांग। )  

☆ कथा कहानी – दिव्यांग  ☆

भरत फुटपाथ पर बैठा गहरी सोच में था। वह मुंबई शहर की ट्राफिक को देख रहा है। लग रहा है मानो सब कुछ रुक गया है। अपनी जिंदगी के प्रति नाराज़ था। वह अपने भविष्य के बारे में सोच रहा है। वह सोच रहा है, मुंबई में इतने सारे लोग रहते है, फिर भी भगवान मुझे ही परेशान करता है। आखिर क्यों? मेरी जिंदगी में कभी खुशी होगी? क्या भगवान सही में है। सोच ही रहा था कि अचानक फुटपाथ पर भीड ज़मा हो गई। वह जाकर देखता है, एक लडकी पत्थर से ठोकर खाकर गिर गई है। लोग उसे उठाकर पास के पत्थर पर बिठाते है। उसके घुटनों से काफी लहू बह चुका है। सब ने उस पर पानी डालकर कपड़े से पैर को बांध दिया।

उस लडकी ने सबको बताया कि, वह अब ठीक है। चिंता की कोई बात नहीं है। वह चल सकती है। सब अपने काम पर जा सकते है। भरत भी सबके निकलने के बाद वहां से चला। भरत को अपनी परेशानी अलग से थी। हादसा देखकर उसे बुरा लगा, फिर लगा कि वह लडकी ठीक हो गई है और वह भी वहां से थोडी दूर धीरे धीरे  जा रहा था।

वह लडकी वहाँ से उठकर धीरे-धीरे पैर रख रही थी। वह लडखडा रही थी। उसे लगा कि वह गिर जाएगी और उसने आगे जा रहे भरत का कंधा ज़ोर से पकड लिया।

वह चिल्लाया, मान न मान मैं तेरा मेहमान। यह क्या बात हुई? आपने मुझे क्यों पकड़ा ? वो भी इतने ज़ोर से बात करते हुए कहता है, “आपको दीखता नहीं क्या ? आपने मेरा शर्ट भी बरबाद कर दिया।“

लडकी ने सहमी आवाज़ में धीरे से कहा, “सर,आपने ठीक ही फरमाया है। मुझे दीखता नहीं है। मैं बहुत संभलकर चलती हूं। आज का समय खराब था, इसलिए पत्थर से ठोकर खाकर गिर पडी। मुझे लगा कि फिर से गिर जाऊँगी इसलिए मैंने आपके कंधे का सहारा लिया। क्षमा कीजिएगा। सॉरी।“

यह श्ब्द सुनकर भरत गदगद हो गया। उसे अच्छा लगा कि, किसी लडकी ने उसे ’सर’ कहकर संबोधित किया।  इतना ही नहीं, ऊपर से क्षमा भी मांग ली। भरत का गुस्सा कम हो गया। उसने देखा कि, उसके घुटनों में अभी भी लहू बह रहा है। कपडा जो लोगों ने बांधा है, वह भी लहूलुहान हो गया है। उसने कुछ सोचकर यहां- वहां देखा और कहा, “मैडम आप के घुटनों में अभी भी लहू बह रहा है। हम पास के अस्पताल में आपको लेकर चलते है।“ तुरंत उस लडकी ने कहा, “मैडम नहीं, रीना, रीना मेरा नाम है जी। चलिए अस्पताल चलते है। मुझे भी लग रहा है कि डॉक्टर को दिखाना पडेगा। चलना थोड़ा मुश्किल लग रहा है।“

“आपको पता है , मेरा नाम भरत है। मैं अविनाश नाम की कंपनी चलाता हूँ। यह कंपनी डिजिटल आइटम बेचती है। अभी- अभी शुरु हुई है। आजकल काम थोडा मन्दा चल रहा है। धीरे- धीरे कंपनी ठीक तरह से पहले जैसे ही होने की संभावना है। देखिए बातों- बातों में अस्पताल आ गया।“ भरत उसे डॉक्टर के पास ले जाकर मरहम पट्टी करवाता है।  फिर वह रीना से पूछता है, “जी आप गलत मत समझिएगा लेकिन, आप यहां पर अकेले…? कहने का मतलब है कि…?” कहते – कहते रुक जाता है।

“आप भी ना भरत जी अब इतनी देर साथ रहने के बावजूद भी आप बात कहने-पूछने के लिए हिचकिचाते हो। कोई बात नहीं, आप कुछ भी मत सोचिए। जो मन में है बेझिझक आप पूछ सकते हो। एक कप कॉफी के साथ इत्मीनान से मैं सारी बात बताऊँगी। मंजूर है तो पूछिए”, कहते हुए मुस्कुराती है।

भरत उसकी मुस्कान को देखता रह जाता है। उसे उसकी मुस्कान पसंद आती है। रीना के  बात करने का तरीका भी उसे भा जाता है। रीना की सुंदरता भी उसके मन को मोह लेती है। उसे देखकर मन ही मन सोचता है कि इतनी सुंदर लडकी और भगवान ने……….अगर उसको दृष्टि दी होती तो कितना अच्छा होता। मैं तो अपनी परेशानी को लेकर भगवान को कोस रहा था। यह क्या?  मुझसे भी ज्यादा परेशानी इस लडकी है।

रीना थोडी देर गुनगुनाते हुए बाद में अचानक पूछती है, “भरत जी क्या हुआ? किस सोच में पड गए ? देखिए अगर आपको कॉफी नहीं पिलानी है , तो ठीक है। मैं यहां पर अक्सर आती हूं। आज समय खराब था और अच्छा भी।  मैं बताऊँ आपको कॉफी डे पास में ही है। हम थोडा बैठ जाएगे तो दर्द भी कम होगा।“

“अरे! नहीं तो कुछ भी नहीं सोच रहा था। चलिए , कॉफी डे में बैठकर थोडी देर आराम से बात करते है।“ कहते हुए वह रीना का हाथ पकडकर कॉफी डे लेकर चलता है।

वहाँ पर भरत रुपये देकर केपेचीनो ऑर्डर करते हुए रीना से पूछता है, “आप यहाँ कैसे? कोई काम था?”

“ जी, मैं गहनों के लिए डिजाईन बनाती हूं। डिजाईन को गहने के दुकान में बेचती हूं। मैं पुरुषोत्तम ज्वेलर्स को अपनी लेटेस्ट गहनों की डिजाइन दिखाने आई थी। उनको पसंद नहीं आई तो बस ऐसे ही चलकर आ रही थी कि यह घटना घट गई।“ बात को आगे बढाते हुए कहती है, “आपको पता है भगवान एक चीज़ छीनता है तो दूसरी चीज़ देकर उसे नवाज़ता  है। इन्सान को उसे परखना है। वैसे भी भगवान हर इन्सान को सब कुछ नहीं देता है। अगर दे देता तो फिर वह भगवान को कैसे याद करता ? बताइए” कहते हुए वह फिर से मुस्कुराती है।

भरत को पता नहीं क्यों रीना की मुस्कुराहट बहुत ही आकर्षित करती है, वह मन ही मन बुदबुदाता है कि सुंदरता के साथ रीना में इतने अच्छे गुण भी है। उसके साथ उसे समय बिताना अच्छा लगता है। भरत ने रीना से पूछा, “आप बुरा ना माने तो क्या आप बता सकती है कि आप यह डिज़ाइन कैसे करते हो? क्या आप जन्म से ही अंधे हो?”

“जी, इसमें क्या बात है? आप पूछ सकते हो। पहली बात, मैं जन्म से अंधी नहीं हूं। एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ पूना जा रही थी। हाइवे पर एक्सिडेन्ट हुआ और मेरी आंखे चली गई। उस वक्त तो मुझे बहुत बुरा लगा था। भविष्य के बारे में भी बहुत सोच रही थी। भविष्य में शून्य के अलावा कुछ भी नहीं था। लगा जैसे मेरे सपने को पूरा कैसे करुँगी ? आगे क्या होगा ? जैसे मैंने आपको पहले भी कहा था कि भगवान एक चीज़ लेता है तो दूसरी दे देता है। वही वक्त था कि, मैंने स्वयं को परखने की कोशिश की। अंधी हो गई तो डान्स करना संभव हो पाएगा या नहीं ? मेरे लिए बहुत बडा प्रश्न था। मुझे बेली डान्स बहुत पसंद है। मैं उसके लिए प्रयास भी कर रही थी। रोज तीन घंटा उस नृत्य का अभ्यास कर रही थी। थोडी देर के लिए मैंने सोचा, जिंदगी में कुछ तो करना है। फिर सोचा, मुझे क्या आता है? मैं क्या कर सकती हूं। यही सब सोचते हुए लगा, क्यों न मैं डिजिटल का इस्तेमाल करते हुए गहनों की डिज़ाइन करूँ। शुरुआत में तकलीफ हुई लेकिन बाद में सीख गई। अब बस यहीं सहारा है मेरी जिंदगी का। कहते हुए अपने आंसू पौंछती है।“

बात करते -करते भरत ने उसके कुछ डिजाइन देखें थे। कुछ साल पहले के और अभी के थे। उसे बहुत अच्छे लगे थे। उसी वक्त कॉफी डे में एक गहनों से लदी औरत आती है। भरत उसे देखकर दंग रह जाता है। तुरंत भरत उनसे बात करता है।  भरत ने उनके गहनों की तारीफ़ करते हुए बात की गहराई को जानना चाहा। आपने यह गहने कहाँ से खरीदे ? मैं अपनी पत्नी के लिए बनवाना चाहता हूँ। तो उसने बताया कि उसने “यह गहने पुरुषोत्तम ज्वेलर्स से खरीदे।“

“जी, धन्यवाद” कहते हुए मन ही मन सोचता है, जबकि उसने तो रीना के डिजाइन लेने से मना कर दिया था। यह गहने हू..ब…हू यही डिजाइन के थे। भरत ने तुरंत फोन करके अपने दोस्त को इस बारे में जानकारी देने के लिए कहां। उसके दोस्त केशव ने बताया कि, वे लोग रीना के डिज़ाइन का ही इस्तेमाल कर रहे है। जब कि रीना को इसका अंदाज़ा तक नहीं है । वे रीना को डिज़ाइन खरीदने से मना कर देते है और दूसरी ओर वे फोटो लेकर रख लेते है।

भरत ने यह बात रीना को बताई तो उसने बहुत ही सरलता से जवाब दिया, “मुझे इस बारे में नहीं पता।“

भरत गुस्से में आकर कहता है, “आप ऐसे ही बैठे रहना। भगवान भरोसे। इस समाज में ऐसे लोगों को सज़ा होनी चाहिए। आप सिर्फ भगवान का नाम जपते रहो। चलिए जाकर उनसे पूछते है।“

तुरंत रीना अपना हाथ भरत के हाथ पर रखते हुए कहती है, “लगता है आपको भगवान पर भरोसा नहीं है। ऐसा क्या हुआ है जो आपको भरोसा नहीं है। आप लाख छिपाने की कोशिश करो लेकिन आपकी बातों से यह अहसास हो ही जाता है कि आप कुछ छिपा रहे है।“

“बात कुछ खास नहीं है?” भरत को रीना के दुःख के सामने अपना दुःख कम लगा। फिर भी परेशानी तो है। भरत ने स्वयं को संभालते हुए कहा, “जी मौसम की वजह से बारिश और आंधी में हमारी बिल्डिंग गिर गई।“

रीना को अजीब लगता है, वह तुरंत कह उठती है, “बिल्डिंग गिर गई? मतलब?”

“जी, हम लोगों को जब लगा कि बिल्डिंग गिरनेवाली है। तो हम सब बाहर निकल आए। हमारे ऊपर के घर में एक अंकल, आंटी रहते थे जिनकी उम्र हो चुकी थी। वे बाहर नहीं निकल पाए, दर असल उम्र की वजह से वे चल नहीं पाते थे। उनकी मौत हो गई। बहुत बुरा लगा। तो अब आगे जिंदगी के बारे में वहां पर बैठा सोच रहा था और आपको देखा। तब से बस…चल रहा है।“

रीना को चिंता हो गई। वह चिंतित स्वर में कहती है, “तब तो आपको उस जगह पर जाना चाहिए।“

“अब किसका घर? कहाँ है वह घर? कुछ भी नहीं बचा। आप कहती हो भगवान है। भगवान है तो ऐसा क्यों किया ?” कहते हुए भरत आंसू पौछते हुए बुरा मानता है।

“सारे गलत काम इन्सान करें तो हम क्यों भगवान को कोसे? यह तो गलत है। भगवान ने इन्सान को बनाया फिर उन्होंने उनको नहीं बताया कि गलत काम करो। आप लोग भगवान को क्यों बुरा कहते हो?” कहते हुए रीना थोडा कॉफी का प्याला ठीक करती है।

“आप भी ना! रीना जी। ठीक है चलिए, एक क्षण के लिए मान लिया कि आपके भगवान गलत नहीं है। फिर भी हम ही क्यों? क्यों हमारी ही बिल्डिंग ऐसी गिरी?” कहते हुए भरत भी कॉफी के प्याले को ठीक करता है।

“गज़ब है, जी आप जब घर खरीदते हो तो क्या आप नहीं देखते हो कि बिल्डर कौन है ? कितनी रेत और सिमेन्ट उसमें मिला रहा है। फाउन्डेशन कैसे डाल रहा है ? ईंट कैसी इस्तेमाल कर रहा है? यह सब देखकर ही घर खरीदना चाहिए। घर खरीदना कोई छोटी बात तो है नहीं, यह तो जिंदगी भर की पूंजी है।  चलिए आपकी तसल्ली के लिए मैं आपको अपने दोस्त के बारे में बताती हूं। मेरी एक दोस्त थी अंशु। बचपन से उसकी मानसिकता कुछ अलग थी। वह बचपन से लडकों जैसे रहना पसंद करती थी। वह लडकों की बॉडी  बिल्डिंग में हिस्सा भी लेना चाहती थी। अंशु जैसे-जैसे बडी होती गई। शारीरिक रुप से लडकी लेकिन मानसिक रुप से लडको जैसा ही व्यवहार करती थी। उसने अपने पिताजी से मन की बात बताई। उसके पिता जी का अपना उद्योग था। बहुत ही धनवान थे। अब अंशु को लडका बनना था। कुदरत के नियम के विरुद्ध में जाना था। उसके पिता जी ने उसका साथ दिया। सब सर्जरी के बाद आज वह अंशु से अंश में परिवर्तित हुई है। आपको पता है वह बॉडी बिल्डिंग की प्रतियोगिता में अंश जीता भी है। आप चाहो तो उसे गूगल पर देख सकते है। यह सारी चीज़े करने के लिए तो भगवान नहीं कहता। पहले जब मैंने उससे लिंगपरिवर्तन के बारे में सुना तो अजीब लगा, परंतु बाद में पता चला कि ऐसे कई लोग है जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऐसा करते है। मैंने उसे मनाने की कोशिश भी की थी, कुदरत ने जो दिया है उसे रख ले। क्यों अपना लिंग परिवर्तन करा रही है। उसने तो एक ही रट लगा रही थी कि उसे अपनी बॉडी अच्छी बनानी है।  वह अपने इरादों से टस से मस नहीं हुई। वह अपने इरादों में पक्की थी। उसे जो करना है वह किसी भी हाल में करना ही है।  उसकी सोच ही अलग थी।“

“अंशु हंमेशा यही सोचती थी कि भगवान ने मुझे लडकी बनाकर इस धरती पर भेजा है। मैं लडकी बनकर चूल्हा-चौका करने के लिए नहीं पैदा हुई हुँ। मुझे जिंदगी में बहुत काम करने है। मैं एक बात बताऊँ भरत जी, यही जिंदगी है। संघर्ष नहीं करेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा। हमें समय के साथ बदलना और जिंदगी को  अपनाना सीखना चाहिए। आप परेशान मत होइए।  आपकी परेशानी भी दूर हो जाएगी। मुझे इस बात का कोई गम नहीं है कि मेरी डिजाइन उन लोगों ने चुरा ली है। मैं कुछ और डिजाइन बना लूगी। मुझमें वो हुन्नर है।  अब उस दुकान में कभी नहीं जाऊँगी। देखिए, मुझ पर भी बेली डान्स सीखने का भूत सवार था। मैंने सीखा भी अब एक्सिडेन्ट के बाद नहीं कर पा रही   हूं। दुनिया रुक तो नहीं जाएगी। आगे देखते है ! अगर मौका मिला तो साबित कर देंगे कि हम भी कुछ कर सकते है। मुझे लगता है, हम बहुत देर से बात कर रहे है। अब घर जाना चाहिए। आपको भी आगे क्या करना है उसके बारे में सोचना चाहिए। बैठकर भगवान को कोसने से अच्छा है कि पुरुषार्थ करें। वह अपनी घडी़ को छूती हुई अरे! अब तो शाम के सात बज गए है।“

“सही है, चलिए मैं आपको आपके घर तक पहुंचा दूंगा।“ कहते हुए वह रीना के मदद के लिए आगे बढता     है।

“नहीं भरत जी। मैंने आज तक किसी का सहारा नहीं लिया है। मेरा मानना है कि जिंदगी में सहायता सिर्फ कमज़ोर लोग ही लेते है। मैं कमज़ोर नहीं हूं, कहते हुए वह ऑटो को आवाज़ देती है। और हाँ भरत जी, आप अब तक मुझसे बात कर रहे थे। आपको कहीं पर भी कोई अहसास  हुआ। मैंने भी लिंग परिवर्तन कराया है। मैं दुनिया के सामने अपना नृत्य करके दिखाऊँगी। अंधी हो गई तो क्या हुआ? दुनिया तो अंधी नहीं है। वह देखेगी मेरा नृत्य। आप भी देखना समझे! वैसे हमारा एक गिरोह है, जो समाज को दिखाना चाह्ते है कि इन्सान अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए कुछ भी कर सकता है। थोडे दिनों के बाद अंश की शादी एक किन्नर स्त्री से होनेवाली है। आप अपना फोन नंबर दीजिए हम आपको भी न्योता भेजेंगे, ज़रुर आना है।“ मुस्कुराते हुए वह ओटो में बैठकर कहती है, चलिए साहब तीसरी गली में जाना है।

आश्चर्य से भरत वह मुस्कुराते चेहरे को देखता रहता है। किसी को भी पता नहीं चलता की रीना अंधी और उसका लिंग परिवर्तन हुआ है। रीना में आत्मविश्वास को देखकर भरत दंग रह जाता है।

 

©  डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

लेखिका व कवयित्री, सह प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, जैन कॉलेज-सीजीएस, वीवी पुरम्‌, वासवी परिसर, बेंगलूरु।

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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