(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकते हैं ।
आज प्रस्तुत है श्री रंगा हरि जी की पुस्तक “धर्म और संस्कृति -एक विवेचना” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )
पुस्तक – धर्म और संस्कृति एक विवेचना
लेखक – श्री रंगा हरि
☆ पुस्तक चर्चा ☆ धर्म और संस्कृति – एक विवेचना – श्री रंगा हरि ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆
धर्म को लेकर भारत में तरह तरह की अवधारणायें पनपती रही हैं . यद्यपि हमारा संविधान हमें धर्म निरपेक्ष घोषित करतया है किन्तु वास्तव में यह चरितार्थ नही हो रहा. देश की राजनीति में धर्म ने हमेशा से बड़ी भुमिका अदा की है. चुनावो में जाति और धर्म के नाम पर वोटो का ध्रुवीकरण कोई नई बात नहीं है. आजादी के बाद अब जाकर चुनाव आयोग ने धर्म के नाम पर वोट मांगने पर हस्तक्षेप किया है. तुष्टीकरण की राजनीति हमेशा से देश में हावी रही है. दुखद है कि देश में धर्म व्यक्तिगत आस्था और विश्वास तथा मुक्ति की अवधारणा से हटकर सार्वजनिक शक्ति प्रदर्शन तथा दिखावे का विषय बना हुआ है. ऐसे समय में श्री रंगाहरि की किताब धर्म और संस्कृति एक विवेचना पढ़ने को मिली. लेखक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुयायी व प्रवर्तक हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को हिन्दूवादी संगठन माना जाता है. स्वाभाविक रूप से उस विचारधारा का असर किताब में होने की संभावना थी, पर मुझे पढ़कर अच्छा लगा कि ऐसा नही है, बल्कि यह हिन्दू धर्म की उदारवादी नीति ही है जिसके चलते पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि हिन्दूत्व, धर्म से ऊपर संस्कृति है. मुस्लिम धर्म की गलत विवेचना के चलते सारी दुनियां में वह किताबी और कट्टरता का संवाहक बन गया है, ईसाई धर्म भारत व अन्य राष्ट्रो में कनवर्शन को लेकर विवादस्पद बनता रहा है.
सच तो यह है कि सदा से धर्म और राजनीति परस्पर पूरक रहे हैं. पुराने समय में राजा धर्म गुरू से सलाह लेकर राजकाज किया करते थे. एक राज्य के निवासी प्रायः समान धर्म के धर्मावलंबी होते थे. आज भी देश के जिन क्षेत्रो में जब तब विखण्डन के स्वर उठते दिखते हैं, उनके मूल में कही न कही धर्म विशेष की भूमिका परिलक्षित होती है.
अतः स्वस्थ मजबूत लोकतंत्र के लिये जरूरी है कि हम अपने देश में धर्म और संस्कृति की सही विवेचना करें व हमारे नागरिक देश के राष्ट्र धर्म को पहचाने. प्रस्तुत पुस्तक सही मायनो में छोटे छोटे सारगर्भित अध्यायों के माध्यम से इस दिशा में धर्म और संस्कृति की व्यापक विवेचना करने में समर्थ हुई है.
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈