डॉ राकेश ‘ चक्र

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  एक विचारणीय आलेख  “दाँतों की आत्मकथा.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 61 ☆

☆ बाल साहित्य – दाँतों की आत्मकथा ☆ 

मित्रो मैं दाँत हूँ, बल्कि आज मैं अपनी ही नहीं, बल्कि सभी बत्तीस साथियों की आत्मकथा इसलिए लिख रहा हूँ कि बच्चों से लेकर बड़े तक हमारे प्रति सचेत नहीं रहते। मुँह में साफ सुथरे सुंदर – सुंदर खिलखिलाते हम दाँत सभी को अच्छे लगते हैं। हम दाँतों की सुंदरता से ही चेहरे की आभा और कांति बढ़ जाती है। लोग बात करना और मिलना – जुलना भी पसंद करते हैं। प्रायः हम मनुष्य के मुख में बत्तीस होते हैं। सोलह ऊपर और सोलह नीचे के जबड़े में। हम दाँतों की सरंचना कैल्शियम के द्वारा ही हुई है, इसलिए जो बच्चे बचपन से ही साफ – सफाई और बिना नाक मुँह बनाएअर्थात मन से दूध , पनीर, दही आदि कैल्शियम वाली खाने- पीने की चीजें अपने भोजन में सम्मिलित करते हैं तथा खूब चबा- चबा कर भोजन आदि करते हैं तो हम जीवन भर उनका साथ निभाते हैं। क्योंकि ईश्वर ने बत्तीस दाँत इसलिए दिए हैं ताकि हम दाँतों से एक कौर को बत्तीस बार चबा चबा कर ही खाएँ, ऐसा करने से जीभ से निकलनेवाला अमृत तत्व लार भोजन में सुचारू से रूप से मिल जाता है और भोजन पचाने की प्रक्रिया आसान हो जाती है। हड्डियां मजबूत रहती हैं। हम दाँत भी हड्डी ही हैं।

हम  जब बच्चा एक वर्ष का लगभग हो जाता है तो हम आना शुरू हो जाते हैं। फिर धीरे-धीरे हम निकलते रहते हैं। बचपन में हमको दूध के दाँत कहते हैं। जब बच्चा छह वर्ष का लगभग हो जाता है तब हम दूध के दाँत धीरे – धीरे उखड़ने लगते हैं और हम नए रूप रँग में आने लग जाते हैं।

हम दाँत कई प्रकार के होते हैं। हमें अग्रचवर्णक, छेदक, भेदक, चवर्णक कहते हैं। अर्थात इनमें हमारे कुछ साथी काटकर खाने वाले खाद्य पदार्थ को काटने का काम करते हैं, कुछ चबाने का, कुछ पीसने आदि का काम करते हैं।

मुझे अपनी और साथियों की आत्मकथा इसलिए लिखनी पड़ रही है कि मनुष्य जाति बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक हमारे प्रति घोर लापरवाही बरतती है। और हमें बहुत सारी बीमारियाँ मुफ्त में दे देती है या हमारी असमय मृत्यु तक करा देती है। हमारे बीमार रहने या हमारी असमय मृत्यु होने से  बच्चा या बड़ा भी बहुत दुख और कष्ट उठाता है, डॉक्टर के पास भागता है। अपना कीमती समय और धन बर्बाद करता है। असहनीय दर्द से चिल्लाता है, दवाएँ खाता है।

एक हमारे जाननेवाले दादाजी हैं, जो बालकपन और किशोरावस्था में हम दाँतों के प्रति बहुत लापरवाह थे। जब उनकी युवावस्था आई तो वे कुछ सचेत हुए, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी, वे इस बीच हम दाँतों के कारण बहुत पीड़ाएँ झेलते रहे। और इस बीच हमारे चार साथियों में असहनीय दर्द होने के कारण मुँह से ही निकलवाना पड़ा अर्थात हमारे चार साथियों की मृत्यु हो गई। फिर तो वे कष्ट पर कष्ट उठाते रहे। चार साथी खोने से हम भी असंतुलित हो गए और हमारे घिसने की रफ्तार भी बढ़ती गई। जब दादा जी की उम्र पचास रही होगी, तब तक हम बहुत घिस गए थे, उन्हें भोजन चबाने में बहुत दिक्कत होती गई और दादाजी को हमारे कुछ साथियों में आरसीटी करवाकर अर्थात हम दाँतों की नसों का इलाज कराकर कई कैप लगवाईं। फिर भी आए दिन ही दादाजी को बहुत कष्ट झेलना पड़ा। क्योंकि यह सब तो कामचलाऊ दिखावटी ही था। प्राकृतिक दाँतों अर्थात ईश्वर के दिए हुए हम दाँतों की बात कुछ और ही होती है। अर्थात मजबूत होते हैं। दादाजी ने कहा कि मनुष्य जाति को बताओ कि उसे बचपन से बड़े होने तक किस तरह हम दाँतों की देखभाल और साफ सफाई रखनी चाहिए।

दादाजी अब हमारी बहुत देखभाल करते हैं। दादाजी ने हमारे जीवन के ऊपर बहुत सुंदर कविता भी लिखी है। जो भी पढ़ेगा वह खुश हो जाएगा———– क्योंकि उनके मन की शुभ इच्छा है कि जो दाँतों की पीड़ा उन्हें हुई है, साथ ही समय और जो धन नष्ट हुआ है, वह उनकी आनेवाली पीढ़ी को बिल्कुल न हो।

बाल कविता – ” मोती जैसे दाँत चमकते “

हमको पाठ पढ़ाया करते

प्यारे अपने टीचर जी

दाँतों की नित रखें सफाई

कहते हमसे टीचर जी।।

 

दाँत हमारे यदि ना होते

हो जाता मुश्किल भी खाना

स्वाद दाँत के कारण लेते

इनको बच्चो सभी बचाना।।

 

जब- जब खाओ कुल्ला करना

नहीं भूल प्रिय बच्चो जाना

रात को सोना मंजन करके

भोर जगे भी यह अपनाना।।

 

चार तरह के दाँत हमारे

प्यारे बच्चो हैं होते

कुछ को हम छेदक हैं कहते

कुछ अपने भेदक होते।।

 

कुछ होते हैं अग्र चवर्णक

कुछ अपने भोजन को पीसें

खूब चबाकर भोजन खाएँ

कभी नहीं उस पर हम खीजें।।

 

सोलह ऊपर, सोलह नीचे

दाँत हमारे बच्चो होते

करें सफाई, दाँत- जीभ की

दर्द के कारण हम न रोते।।

 

मोती जैसे दाँत चमकते

जो उनकी रक्षा करते हैं

प्यारे वे सबके बन जाते

जीवन भर ही वे हँसते हैं।।

 

तन को स्वस्थ बनाना है तो

साफ – सफाई नित ही रखना,

योग, सैर भी अपनाना तुम

अपनी मंजिल चढ़ते रहना।।

दादाजी ने अपनी कविता में बहुत सुंदर ढंग से समझाने का प्रयास किया है, लेकिन हम दाँत आपको पुनः सचेत कर रहे हैं तथा हमारी बातों को सभी बच्चे और बड़े ध्यान से सुन लेना कि जो कष्ट और पीड़ा दादाजी ने उठाई है वह आपको न उठानी पड़े। समय और धन की बचत हो, डॉक्टर के की क्लिनिक के चक्कर न लगाने पड़ें, इसलिए हमें स्वस्थ रखने के लिए नित्य ही वह कर लेना जो मैं दाँत आपसे कह रहा हूँ —-

बच्चे और बड़े सभी लोग अधिक ठंडा और अधिक गर्म कभी नहीं खाना। न ही अधिक ठंडे के ऊपर अधिक गर्म खाना और न ही गर्म के बाद ठंडा। ऐसा करने से हम दाँत बहुत जल्दी कमजोर पड़ जाते हैं। साथ ही पाचनतंत्र भी बिगड़ जाता है। भोजन के बाद ठंडा पानी कभी न पीना । अगर पीना ही पड़ जाए तो थोड़ा निबाया अर्थात हल्का गर्म ही पीना। जो लोग भोजन के तुरंत बाद ठंडा पानी पीते हैं उनका भी पाचनतंत्र बिगड़ जाता है। पान, तम्बाकू, गुटका खाने वाले तथा रात्रि के समय टॉफी, चॉकलेट या चीनी से बनी मिठाई खानेवाले भी सावधान हो जाना। अर्थात खाते हो तो जल्दी छोड़ देना, नहीं तो हम दाँतों की बीमारियों के साथ ही अन्य भयंकर बीमारियों को भी जीवन में झेलना पड़ेगा।

भोजन के बाद और कुछ भी खाने के बाद कुल्ला अवश्य करना। रात्रि को सोने से पहले मंजन या टूथपेस्ट से ब्रश करके अवश्य सोना। अच्छा तो यह रहेगा कि साथ में गर्म पानी में सेंधा नमक डालकर कुल्ला और गरारे भी कर लेना। ऐसा करने से हम भी जीवन भर  स्वस्थ और मस्त रहेंगे और हमारे स्वस्थ रहने से आप भी। साथ में हमारी जीवनसंगिनी जीभ की भी जिव्ही से धीरे-धीरे सफाई अवश्य कर लेना। क्योंकि बहुत सारा मैल भोजन करने के बाद जीभ पर भी लगा रह जाता है। जब ब्रश करना तो आराम से ही करना, जल्दबाजी कभी न करना। दोस्तो जल्दबाजी करना शैतान काम होता है। सुबह जगकर दो तीन गिलास हल्का गर्म पानी बिना ब्रश किए ही पी लेना। ऐसा करने से आपको जीवन में कभी कब्ज नहीं होगा। शौचक्रिया ठीक से सम्पन्न हो जाएगी। बाद में ब्रश या मंजन कर लेना या गर्म पानी में सेंधा नमक डालकर कुल्ला और गरारे कर लेना। थोड़ा मसूड़ों की मालिश भी कर लेना। ये सब करने हम हमेशा स्वस्थ और सुंदर बने रहेंगे तथा जीवनपर्यन्त आपका साथ निभाते रहेंगे। नींद भी अच्छी आएगी । जो लोग हमारा ठीक से ध्यान और सफाई आदि नहीं करते हैं उनके दाँतों में कीड़े लग जाते हैं, अर्थात कैविटी बन जाती है या पायरिया आदि भयंकर बीमारियाँ हो जाती हैं।

दोस्तो आपने अर्थात सभी बच्चे और बड़ों ने हम दाँतों का कहना मान लिया तो जान लीजिए कि आप हमेशा तरोताजा और मुस्कारते रहेंगे। हर कार्य में मन लगेगा। पूरा जीवन मस्ती से व्यतीत होता जाएगा।

मैं दाँत आत्मकथा समाप्त करते- करते एक संदेश और दे रहा हूँ कि अपने डॉक्टर खुद ही बनना और ये भी सदा याद रखना—-

 “जो भी करते अपने प्रति आलस, लापरवाही।

उनको जीवन में आतीं दुश्वारी और बीमारीं।।”

© डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र.  मो.  9456201857

[email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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