श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना सांझ होते ही ….। )
☆ तन्मय साहित्य #83 ☆ सांझ होते ही …. ☆
सांझ होते ही यादों का, दीपक जला
रात भर फिर अकेला ही जलता रहा,
बंद पलकों में, आए अनेकों सपन
सिलसिला भोर तक यूं ही चलता रहा।।
शब्द हैं सब अधूरे, तुम्हारे बिना
अर्थ अब तक किसी के मिले ही नहीं,
स्वर्ण बासंती मधुमास जाने को है
पुष्प अब तक ह्रदय के खिले ही नहीं,
सीखते सीखते प्रीत के पाठ को
प्रार्थना भाव से रोज पढ़ता रहा।
सिलसिला भोर तक…
नर्म सुधीयों का एहसास ओढ़े हुए
कामनाओं का, निर्लज्ज नर्तन चले,
दर्द है कैद, संयम के अनुबंध में
प्रीत की रीत को जग सदा ही छले,
प्रेम व्यापार में मन अनाड़ी रहा
दांव पर सब लगा हाथ मलता रहा।
सिलसिला भोर तक ….
है विकल सिंधू सा, वेदना से भरा
नीर निर्मल मधुर पान की प्यास है,
चाहे बदरी बनो या नदी बन मिलो
बूंद स्वाति की हमको बड़ी आस है,
मन में ऐसे संभाले रखा है तुम्हें
जिस तरह सीप में रत्न पलता रहा।
सिलसिला भोर तक यूं ही चलता रहा।।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0
मो. 9893266014
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈