महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “मेघदूतम्” श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद # मेघदूत ….पूर्वमेघः ॥१.५७॥ ☆

 

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा

बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः

अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर

आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५७॥

तभी यदि प्रभंजन चले , वृक्ष रगड़ें

औ” घर्षण जनित दाव वन को जलायें

ज्वालायें यदि क्लेश दें चमरि गौ को

तथा पुच्छ के केश दल झुलस जायें

उचित तब तुम्हें तात ! जलधार वर्षण

अनल को बुझा जो सुखद शांति लाये

सफलता यही श्रेष्ठ की संपदा की

समय पर दुखी आर्त के काम आये

 

शब्दार्थ … प्रभंजन… तेज हवा , आंधी

घर्षण जनित दाव … वृक्षो के परस्पर घर्षण से उत्पन्न आग

चमरि गौ    … चमरी गाय जिसकी पूंछ के सफेद बालों से चौरी बनती है

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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