डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 83 – साहित्य निकुंज ☆
☆ चाँदनी ☆
आज
चाँदनी रात है
तुझसे मुलाकात है।
चाँद छुपा है
चाँदनी के आगोश में
चहूँ ओर फैली है चाँदनी
बिखर रही रूप की रागिनी
तेरा रूप देखकर
हूँ मैं खामोश
उड़ गये हैं होश
चाँदनी रात में
निखरा तेरा श्रृंगार
लगता है
तेरे रोम-रोम से
फूट रहा मेरा प्यार ।
तभी नजर पड़ी
चाँद पर
वह चाँदनी से कह रहा हो
तुम दूर न जाना
मेरे साथ ही रहना
तेरे साथ ही मेरा वजूद है।
तुझमें डूबना चाहता हूँ
तुझमें समाना चाहता हूँ।
तुझसे मेरा श्रृंगार है।
तू ही मेरा जन्मों का प्यार है।
तभी निहारा अपने चाँद को
उसने नजरे झुका ली
सार्थक हुई मुलाकात
प्रतीक बन गई
चाँदनी रात।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
अच्छे भाव है
सुंदर रचना