श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक सामायिक एवं भावपूर्ण रचना “आया बसंत आया बसंत”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य#76 ☆ आया बसंत आया बसंत ☆
दो शब्द रचना कार के – हेमंत की अवसान बेला में पतझड़ के बाद जब ऋतु राज बसंत का आगमन होता है, तब वह सृष्टि के सारे प्राणियों को अपने रंगीन नजारों के मोहपाश में आबद्ध कर आलिंगनबद्ध हो उठता है। प्राकृतिक रंगों की अनुपम छटा से धरा का कोना कोना सज संवर उठता है, तारों भरा आसमां गा उठता है। धरती खिलखिला उठती है, मानव-मन के वीणा के तार झंकृत हो उठते हैं। तथा मन मयूर फगुआ और चैता के धुन पर नाच उठता है।
कहीं हरियाली भरे खेतों में खिले पीले पीले सरसों के फूल, तथा कहीं कहीं खिले अलसी के नीले नीले फूल धरती के पीले छींट वाली धानी रंग की चूनर ओढ़े होने का एहसास कराते हैं। तथा धरा पर नीले अंबर के निलिमांयुक्त सागर के उतरने का आभास देते हैं। ऐसे में आम्रमंजरी के खिले पुष्प गुच्छ, कटहलों के फूलों की मादक सुगंध, जब पुरुआ के झोंको पर सवार होकर भोर की शैर पे निकलती है तो वातावरण को एक नवीन ऊर्जा और चेतना से भर देती है। इसी लिए संभवतः बसंत को ऋतु राज भी कहा गया है। ऋतु राज के इसी वैभव से ये रचना परिचित कराती है।——-
आया बसंत आया बसंत,
चहुंओर धरा पर हुआ शोर,
छाया बसंत छाया बसंत,
छाया बसंत छाया बसंत।।
धरती के बाग बगीचों से,
अरहर के झुरमुट खेतों से,
सरसों के पीले फूलों से,
बौराई आम्र मंजरी से,
पी पी पपिहा के तानों से,
कोयल के मीठे गानों से,
तूं देख देख झलके बसंत,
चहुंओर धरा पर हुआ शोर,
आया बसंत आया बसंत,
छाया बसंत छाया बसंत।।१।।
गेंदा गुलाब की क्यारी से,
बेला की फुलवारी से,
चंपा संग चंपक बागों से,
चंचरीक की गुनगुन से
उन्नत वक्ष स्थल गालों में
गोरी के गदराये यौवन पे,
हर तरफ देख छलके बसंत,
चंहुओर धरा पर हुआ शोर,
आया बसंत आया बसंत,
छाया बसंत छाया बसंत।।२।।
ढोलक झांझ मृदंगों से,
भर भर पिचकारी रंगों से।
दानों की लदी बालियों से,
महुआ के रसीले फूलों से,
वो टपके मधुरस के जैसा,
विरहिनि के हिय से हूक उठे,
पिउ पिउ पपिहा के स्वर जैसा,
आमों कटहल के बागों से,
अभिनव सुगंध लाया बसंत,
चंहुओर धरा पर हुआ शोर,
आया बसंत आया बसंत,
छाया बसंत छाया बसंत।।३।।
अलसी के नीले फूलों में,
अंबर के नीले सागर सा,
सरसों के पीले फूलों से,
धरती के धानी चूनर सा
गोरी के उर अंतर में
साजन के प्रेमरंग जैसा,
पनघट वाली के गागर से,
छलके मधुमास शहद जैसा,
बाग-बगीचों अमराई से
झुरझुर चलती पुरवाई से,
नवयौवन की अंगड़ाई से,
बासंती राग विहागों सा,
कुछ नव संदेश लाया बसंत,
चहुंओर धरा से उठा शोर
आया बसंत आया बसंत,
छाया बसंत छाया बसंत।।४।।
चंहुओर अबीर गुलाल उड़ें,
गोरी के नैन से नैन लड़े।
इक अलग ही मस्ती छाई है,
सारी दुनिया बौराइ है।
कान्हा के रंगीले रंगों में ,
राधा की बांकी चितवन में,
हर तरफ देख बगराया बसंत,
चंहुओर धरा पर हुआ शोर,
आया बसंत आया बसंत
छाया बसंत छाया बसंत।।५।।
धरती का श्रृंगार बसंत है,
नवउर्जा का संचार बसंत है,
खुशियों का अंबार बसंत है,
कामदेव का हार बसंत है,
मासों में मधुमास बसंत है,
पिया मिलन की आस बसंत है,
जीवन ज्योति प्रकाश बसंत है,
रिस्तों की मधुर मिठास बसंत है।
प्रकृति रंग लाया बसंत,
चंहुओर धरा पर हुआ शोर,
आया बसंत आया बसंत
छाया बसंत छाया बसंत।।६।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
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