श्री अजीत सिंह

(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं।  इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज  श्री अजीत सिंह जी द्वारा प्रस्तुत है ई-अभिव्यक्ति के जीवन-यात्रा स्तम्भ के अंतर्गत श्रद्धांजलि स्वरुप एक प्रेरक प्रसंग –  ‘’हत्थ खिच्च के रखीं पुतर’…. स्व. शांतिरानी पॉल’। हम आपकी अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय-समय पर साझा करते रहेंगे।)

श्रद्धांजलि
☆ जीवन यात्रा ☆ ‘हत्थ खिच्च के रखीं पुतर’…. स्व. शांतिरानी पॉल ☆

वे चली गईं यह कहकर…. “हत्थ खिच्च के रखीं पुतर”!

शांतिरानी पॉल का आशीर्वचन  हमेशा एक ही होता था, “हत्थ खिच्च के रखीं पुतर” यानि खर्चा संभल के करना।

जीवन में भारी उतार चढ़ाव देख चुकी वे अक्सर कहती थीं, “मुसीबतों को ज़्यादा याद नहीं करना चाहिए, नेमतों को याद रखो, और सबसे बड़ी बात यह कि किफायत से जीवन जीओ। बुरे वक़्त में सबसे पहले रुपया पैसा ही काम आता है। वक़्त कभी भी बदल सकता है”।

अपने पीछे एक भरा पूरा खुशहाल परिवार छोड़ 94-वर्ष  की आयु में वे गत दिवस अनन्त में विलीन हो गईं।  उम्र के हिसाब से वे अच्छी सेहत की मालिक थीं और  खानपान, टेलीविजन और क्रिकेट का मज़ा लेते हुए चिंतामुक्त मस्ती भरा जीवन बिता रही थीं पर 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद उन्होंने बड़ा ही कष्टदायक जीवन देखा था।

विभाजन के वक़्त 6 महीने के पुत्र को लेकर लायलपुर से परिवार के साथ निकली शांतिरानी शिमला, हांसी और लुधियाना होते हुए आखिर हिसार में आकर बसी थी।

“पाकिस्तान से परिवार तो सही सलामत भारत आ गया था क्योंकि हम जुलाई 1947 में दंगे शुरू होने के तुरंत बाद ही निकल आए थे। सामान भी ट्रेन में बुक कराया था पर जब वो भारत पहुंचा तो ट्रकों और बोरियों में ईंट और पत्थर भरे मिले। कुछ गहने साथ ला सके थे, वहीं काम आए । शिमला में ननद के परिवार ने बड़ी मदद की, उन्हीं के कपड़े पहन कर 6 महीने गुजारे, फिर हांसी आ गए”।

“पति डॉ पाल की नौकरी कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना में लगी तो वहां चले गए। हरियाणा बनने पर उनकी बदली हिसार हुई तो यहां आ गए और बस यहीं के हो कर रह गए। इस शहर और यहां के लोगों ने हमें बहुत कुछ दिया”।

हेलो हैलो’ और ‘आई लव यू’

शांतिरानी छोटे बेटे डॉ विनोद पॉल के साथ रहती थीं पर कई देशों में काम कर रहे पोते-पोतियों के पास भी घूम फिर आई थीं।

“विदेशों में अंग्रेज़ी बोलने की कुछ समस्या रहती है पर ‘हेलो हैलो’ और ‘आई लव यू’ से काम चल जाता है। फिर बेटा, बेटी या बहू मेरे ट्रांसलेटर बनकर साथ चलते थे। इंडिया में मेलजोल बड़ा है। अपने बंदों में रहने की बात ही अलग होती है”।

शांतिरानी की बहू कविता  कहती हैं कि आखिर तक वे अपना कमरा खुद ठीक करती थीं । “मेरी शादी ग्रेजुएशन के बाद ही हो गई थी। फिर बेटा पैदा हुआ और बेटे की देखभाल और घर-गृहस्थी में मुझे लगा कि अब मेरी आगे की पढ़ाई नहीं हो सकेगी। अम्मा ने मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए भेजा और 6 महीने के मेरे बेटे की ऐसी देखभाल की कि वह कई साल तक अपनी दादी को ही मम्मी कहता रहा”।

सुख लेने में नहीं, देने में है

शांतिरानी को साढ़े तेरह हजार रूपए महीना फैमिली पेंशन मिलती थी। इसका वह पूरा हिसाब रखती थी। घर वालों को फिजूलखर्ची से रोकती थी।

“जब अम्मा को लगता  कि उसके खाते में चार लाख से ज़्यादा रुपए हो गए हैं तो वे  परिवार को इकट्ठा कर सब बेटे बेटियों में बराबर बांट देती थीं।

पर हमेशा इस नसीहत के साथ कि ‘हत्थ खिच्च के रखीं पुतर’, शांतिदेवी के पुत्र डॉ विनोद पॉल बताते हैं।

वानप्रस्थ संस्था में अपने सम्मान समारोह में पहुंची तो वहां भी 11 हजार की राशि दे आई और साथ में अपनी वही नसीहत भी, ‘हत्थ खिच्च के रखीं पुतर’।

अन्तिम समय तक अम्मा दिमागी तौर पर पूरी तरह अलर्ट थीं। चलने फिरने में तकलीफ होती थी। वे सादा भोजन करती थीं पर मिठाई और पकोड़े भी खाती थीं। नज़र भी सही थी। टेलीविजन स्क्रीन पर लिखे शब्द पढ़ लेती थीं।

लेडी-शो का मज़ा

अम्मा को सिनेमा का भी बड़ा शौक रहा। “पहले सिनेमा घरों में लेडी शो हुआ करते थे। बड़ी औरतें देखने जाती थी। राजेन्द्र कुमार मेरे प्रिय हीरो थे। ‘ससुराल’ और ‘आरज़ू’ फिल्में देखी थीं पर ‘मेरे महबूब’ नहीं देख सकी”, अम्मा ने पुरानी यादें खोजते हुए कहा था।

शांति रानी बाद में फिल्में कम और टेलीविजन सीरियल ज़्यादा देखती थीं, रोज़ाना करीबन 6 घंटे। क्रिकेट की भी बड़ी शौकीन थी। कोई खिलाड़ी ठीक न खेल रहा हो तो वे डांट लगाती थीं, “डुड्डा जेहा ना होवे ते”!

दिल बड़ा रखना चाहिए

बढ़ते पारिवारिक झगड़ों के बारे में सुन कर शांति रानी बड़ी हैरान होती थीं। “मुझे तो समझ ही नहीं आता कि लोग झगड़ते क्यूं हैं। चलो, छोटों ने कोई गलती करदी तो बड़ों को माफ कर देना चाहिए। बड़ों को हमेशा बड़ा दिल रखना चाहिए”।

उनकी यही सोच थी जिसने पूरे परिवार को बांधे रखा। सृजनात्मक सोच ही उनकी दीर्घ आयु का राज़ था।

नमन उनकी प्रेरणादायक स्मृति को।

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
2.5 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments