श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – क्षण-क्षण
मेरे इर्द-गिर्द
बिखरे पड़े हजारों क्षण,
हर क्षण खिलते
हर क्षण बुढ़ाते क्षण!
मैं उठा,
हर क्षण को तह कर
करीने से समेटने लगा,
कई जोड़ी आँखों में
प्रश्न भी तैरने लगा।
क्षण समेटने का
दुस्साहस कर रहा हूँ,
मैं यह क्या कर रहा हूँ?
अजेय भाव से मुस्कराता
मैं निशब्द
कुछ कह न सका,
समय साक्षी है,
परास्त वही हुआ जो,
अपने समय को सहेज न सका।
© संजय भारद्वाज
9890122603
समय क्षण-क्षण करके बीत जाता है। इसको सहेजना अति आवश्यक है।कहते हैं पाछे पछताये का होत है जब चिड़ियाँ चुग गयीं खेत। प्रेरणादायक अभिव्यक्ति।