श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 76 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
चौपाल
नव युग के इस दौर में, बंद हुईं चौपाल
अदालतें ही आजकल, न्याय रहीं संभाल
टकसाल
माँ-बाप को समझ रहे, बच्चे अब टकसाल
पैसों की नित माँग रख, करते रोज सवाल
धमाल
समारोह सूने हुए, सूने सब पंडाल
बंदिश सब पर लग रही, करता कौन धमाल
उछाल
मॅहगाई नित भर रही, नित नव रोज उछाल
सरकारें लाचार हैं, जनता करे सवाल
मालामाल
निर्धनता बढ़ती गई, नेता मालामाल
सुध जनता की कौन ले, आता यही ख्याल
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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