डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 87 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
गोरी तुझसे कर रहा, थोड़ी सी मनुहार।
होली का त्यौहार है, खोलो चितवन द्वार।
होली के त्यौहार में, छाई ख़ुशी उमंग।
भोले का सब नाम ले , छान रहे हैं भंग।
होली का त्योहार है, बना रहे हैं स्वांग।
बम भोले का नाम ले,खूब छानते भांग।
सजनी साजन से कहे, क्यों पी ली है भांग
अंग-अंग फड़कन लगे, क्यों करते हो स्वांग।
होली के हर रंग में, मिला प्यार का रंग।
रंग बिरंगी हो गई, लगी पिया के अंग।
मन ही मन तुम सोच लो, सजना का है संग
अबीर गुलाल के बिना, चढ़ा प्यार का रंग
लाल,लाल हर गाल है, उडत अबीर गुलाल ।
होली के हर रंग में, मन भी होता लाल ।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर रचना बधाई