प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा  एक भावप्रवण कविता  “राम जाने कि – क्यों राम आते नहीं ? “।  हमारे प्रबुद्ध पाठक गण  प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 35 ☆

☆ राम जाने कि – क्यों राम आते नहीं ? ☆

 

राम जाने कि – क्यों राम आते नहीं ?

है जहाँ भी कही, दुखी साधुजन, दे के उनको शरणं क्यों बचाते नही ?

धर्म के नाम नाहक का फैला जुनू, हर समझदार उलझन में बेहाल है।

काट खाने को दौडे  ये वातावरण, राम जाने कि क्यों राम आते नहीं ?

 

बढ़ रही  हर जगह कलह बेवजह, स्नेह – सदभाव पड़ते दिखाई नहीं।

एकता प्रेम विश्वास है अधमरे, आदमियत आदमी से हुई गुम कही ।

स्वार्थ सिंहासनों पर अब आसीन है, कोई समझता नहीं है किसी की व्यथा।

मिट गई रेखा लक्ष्मण ने खींची थी जो, महिमा – मंडित है अपराधियों की कथा।

है खुले आम रावण का आवागमन – राम जाने कि क्यों राम आते नहीं ?

 

सारे आदर्श बस सुनने पढ़ने को हैं, आचरण में अधिकतर हैं मनमानियां।

जिसकी लाठी है अब उसकी ही भैस है, राजनेताओं में दिखती हैं  नादानियां।

स्वप्न में भी न सोचा, जो होता है वो, हर समस्या उठाती नये प्रश्न कई।

मान मिलता है अब कम समझदार को, भीड़ नेताओं की इतनी बढ़ गई।

हर जगह डगमगा गया है संतुलन, राम जाने कि क्यों राम आते नही ?

 

है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक, कट गये चित्रकूटों के रमणीक वन।

स्वर्णमृग चर रहे दण्डकारण्य को, पंचवटियों में बढ़ रहा हैअपहरण।

घूमते हैं असुर साधु के वेश में, अहिल्याएं  कई बन गई हैं शिला।

सारी दुनियां में फैला अनाचार है, रूकता दिखता नही ये बुरा सिलसिला।

हो रहा गाँव – नगरों में नित सीताहरण, राम जाने की क्यों राम आते नहीं?

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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