डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #44 – होली पर्व विशेष – दोहे
तितली भौरा फूल रस, रंग बिरंगे ख्वाब ।
फागुन का मतलब यही, रंगो भरी किताब ।।
औगुनधर्मी देह में, गुनगुन करती आग।
फागुन में होता प्रकट, अंतर का अनुराग ।।
फागुन बस मौसम नहीं, यह गुण-धर्म विशेष ।
फागुन में केवल चले ,मन का अध्यादेश ।
कोयल कूके आम पर, वन में नाचे मोर।
मधुवंती -सी लग रही, यह फागुन की भोर।
मन महुआ -सा हो गया,सपने हुए पलाश।
जिसको आना था उसे, मिला नहीं अवकाश।।
क्वारी आंखें खोजती, सपनों के सिरमौर।
चार दिनों के लिए है ,यह फागुन का दौर।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुन्दर रचना