श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं रंगपंचमी पर्व पर विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 78 ☆
☆ रंगपंचमी विशेष – संतोष के दोहे ☆
माटी वृज की भी कहे, मुझे नहीं अब चैन
चरण पखारन चाहती, कबसे हूँ बैचैन
ग्वाल-बाल तकते रहे ,कबसे प्रभु की राह
रँग-अबीर हाथ लिए, बस खेलन की चाह
आवत देखा कृष्ण को, संखियाँ हुईं अधीर
नर-नारी वृज के सभी, कोई रखे न धीर
श्याम रँग राधा रचीं, मन बसते बहुरंग
मुरली की धुन में नचीं, लग मोहन के अंग
प्रेम-रस में पगे सभी, देख श्याम का रास
वृज में लगता आज यह, ज्यूँ आया मधुमास
प्रेम रँग बरसाइये, कहता यह “संतोष”
चरण-शरण मैं आपकी, हरिये मेरे दोष
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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