(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम साहित्यकारों की पीढ़ी ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है। एक विषय पर अनेक लघुकथाएं लिखकर। इस श्रृंखला में आज से शादी-ब्याह विषय पर हम प्रतिदिन आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है आपकी दो लघुकथाएं “लक्ष्मी जी “एवं “भुतहा घर”। हमें पूर्ण आशा है कि आपको यह प्रयोग अवश्य पसंद आएगा। )
☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#2 – [1] लक्ष्मी जी [2] भुतहा घर ☆
[1]
लक्ष्मी जी
सदियों से नारी को जेवर एवं गृहलक्ष्मी का ओहदा देकर औरत को बना रहा था आदमी।
अब वह सब खत्म। लक्ष्मी जी तो वह अब बनी है। बड़े बड़े ओहदे पर है। बड़ी बड़ी तनख्वाहें पा रही है।अब उसके पास बंगला है, कार हैं, बैंक बैलेंस है।अब आदमी औरत के सामने बौना हो गया है।
दो औरतें बिंदास चर्चा कर रही थीं। अपने सोने के मोटे मोटे कंगन एक दूसरे को दिखा रही थीं।
[2]
भुतहा घर
‘सास नहीं ससुर नही। देवर ननद, भाई भौजाई कुछ नहीं। लड़की राज करेगी’ माँ बोलीं।
‘तो मैं क्या भूतों के संग रहूँगी? पति क्या चौबीस घंटे घर में रहा आएगा?’
‘नेवर – नो -‘
‘घर अकेले से नहीं रिश्तेदारों से भरता है। मायके वाले ही रिश्तों की गलत नींव रखते हैं।’
माँ चुप्पी लगा गयी।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈