श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है “हाइबन- ओस्प्रे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 81 ☆
☆ हाइबन-ओस्प्रे ☆
ओस्प्रे को समुद्री बाज भी कहते हैं। इसे समुद्री हॉक, रिवर हॉक, फ़िश हॉक के नाम से भी जाना जाता है। 7 सेंटीमीटर लंबा और 180 सेंटीमीटर पंखों की फैलाव वाला यह पक्षी मछलियों का शिकार करके खाता है।
यूरोपियन महाद्वीप में बहुतायत से पाया जाने वाला यह पक्षी भारत में भ्रमण के लिए आता रहता है। 1 से 2 किलोग्राम के वजन का यह पक्षी तैरती हुई मछली को झपट कर पंजे में दबा लेता है। इस के पंजों के नाखून गोलाई लिए होते हैं। एक बार मछली पंजे में फंस जाए तो निकल नहीं पाती है।
इसके करिश्माई पंजे के गोलाकार नाखून ही कभी-कभी इसकी मौत के कारण बन जाते हैं। वैसे तो यह अपने वजन से दुगुने वजन की मछली का शिकार कर लेता है। फिर उड़ कर अपने प्रवासी वृक्ष पर आकर उसे खा जाता है। मगर कभी-कभी अनुमान से अधिक वजनी मछली पंजे में फंस जाती है। इस कारण इसकी पानी में डूबने से मृत्यु हो जाती है।
इस पक्षी का सिर और पंखों के निचले हिस्से भूरे और शेष भाग हल्के काले रंग के होते हैं। इसे हम सब बाज के नाम से भी जानते हैं।
शांत समुद्र~
ओस्प्रे डूबने लगा
मछली संग।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
17-01-21
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈