श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक भावपूर्ण रचना “ऐसा प्यारा गाँव हो ….”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 83 ☆ ऐसा प्यारा गाँव हो …. ☆
गौरी का गांव हो,पीपल की छांव हो
झरनों का शोर हो, बागों में मोर हो।
अमवा की डाली हो, कोयलिया काली हो ।
नदिया में कल-कल हो, मृगशावक चंचल हो।
चिड़ियों का गीत हो, सुंदर मन मीत हो।
नदिया में नाव हो, ऐसा प्यारा गाँव हो ।।1।।
पर्वत विशाल हो, देख मन निहाल हो।
ग्वालों की गइया हों, किशन कन्हैया हो ।
राजा हों रानी हों,नानी की कहानी हों ।
दादा हो दादी हों, नतिनि की शादी हो।
उत्सव उमंगहो , यारों का संग हो।
हम सबका सपना हो, हर कोई अपना हो।
इंसानियत की, ठांव गौरी का गांव हो।
बस ऐसा प्यारा सा सुन्दर गाँव हो।।2।।
आग हो अलाव हो, ख्याली पुलाव हो।
राजनैतिक चिंतन हो, समस्या पर मंथन हो।
चट्टी चौबारा हो, मंदिर गुरूद्वारा हो।
पोखर तालाब हों, बगिया गुलाब हो।
मादक बसंत हो , कल्पना अनंत हो।
सुंदर शिवाले हो,पूजा की थाले हों ।
खेत हो सिवान हो, गंवइ किसान हो।
भूखा हो बचपन पर आंखों में सपने हो ।
बिखरी हों खुशियां, जीवन संघर्ष हो।
मेल हो मिलाप हो, ऐसा प्यारा गाँव हो ।।3।।
मंदिर हो मस्जिद हो, पूजा अजान हो ।
दायें में गीता और बायें कुरान हो ।
नात या कौव्वाली हो ,चैता या होली हो।
राम हो रहमान हों, प्रेम गीत गूंजते सदा ।
सपनों से सुंदर हो, प्यार का समंदर हो।
शांति हो समृद्धि हो, ऐसा प्यारा गाँव हो।।4।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर रचना