डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #48 – दोहे
नील वसन तन आवरित,सितवर्णी छविधाम।
कहां प्राण घन राधिके, अश्रु अश्रु घनश्याम।।
मौसम की गाली सुने ,मन का मौन मजूर ।
और आप ऐसे हुए ,जैसे पेड़ खजूर।।
जंगल जंगल घूम कर ,मचा रहे हो धूम ।
पंछी को पिंजरा नहीं, ऐसे निकले सूम।।
क्या मेरा संबल मिला, बस तेरा अनुराग ।
मन मगहर को कर दिया, तूने पुण्य प्रयाग।
सांस सदा सुमिरन करें, आंखें रही अगोर।
अहो प्रतीक्षा हो गई, दौपदि वस्त्र अछोर।।
बरस बीत कर यो गया , मेघ गया हो रीत।
कालिदास के अधर पर, यक्ष प्रिया का गीत।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया