सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “मंज़र”। )
आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी के यूट्यूब चैनल पर उनकी रचनाओं के संसार से रूबरू हो सकते हैं –
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 82 ☆
मंज़र बदलते देखा है,
ज़र्रों को तूफ़ान में
और आँधियों को तिनकों में
चुटकी में तबदील होते देखा है,
पदचाप सुनाई भी नहीं आये
और चाँद को धरती पर उतरते देखा है,
फिर उसी पूनम के चाँद को
वापस आसमान में बिना कुछ कहे
चुपचाप जाते हुए देखा है…
ऐसे वक़्त अकस्मात् ही
नज़र चली जाया करती थी
हाथों की लक़ीरों पर-
न जाने कितनी बार उनके पतले होने पर
आंसुओं को बरसते देखा है…
पर फिर अब मुस्कुरा उठी हूँ
इन मंज़रों के बदलते मिज़ाज पर –
मंज़र हैं, बदलेंगे ही…
रूह की खुशरंग फितरत तो
रहेगी हमेशा, हमेशा, हमेशा…
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈