(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की एक भावप्रवण कविता – अंतर नहीं होता कवि और चित्रकार में। इस भावप्रवण रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 106 ☆
अंतर नहीं होता कवि और चित्रकार में
चित्रकार की तूलिका की जगह
कवि के पास होती है कलम
और रंगों की जगह शब्द कैनवास बड़ा होता है,
विश्वव्यापी कवि का
अपनी कविता मे वह
समेट लेना चाहता है सारी दुनिया को
अपनी बाहों में शब्दों के घेरे से
लोगों के देखे पर अनदेखे संवेदना से सराबोर दृश्य
अपने हृदय में समेट लेती हैं
कवि और चित्रकार की भावनाये
फिर कभी एकांत में डैवेलप करता है
मन के कैमरे में कैद
सारे दृश्य कवि कविता में
और
चित्रकार चित्र में
जिसे पढ़कर या सुनकर
या देखकर
लोग पुनः देख पाते हैं
स्वयं का ही देखा पर अनदेखा दृश्य
और इस तरह बन जाते हैं
एक के हजार चित्र , कविता से
हर मन पर अलग-अलग रंग के
ठीक वैसे ही
जैसे उतार देता है चित्रकार
दो तीन फ़ीट के कैनवास पर हमारे देखते-देखते एक
मनोहारी चित्र
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈