डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #51 – दोहे
मेघ कुंतला याद है, याद रसीले बैन ।
मृगलोचन से दूधिया, मृगनयनी के नैन।।
कटि, तट, पनघट एक से, छविदाता अभिराम।
मुझे दिखाई दे रहा, लिखा प्यार का नाम।।
कहने को हम दूर हैं, लेकिन बहुत समीप ।
ऊर्जा लेकर आपकी, जलता प्राण प्रदीप।।
थकन, निराशा, खिन्नता, या तिरती मुस्कान ।
मन में क्या कुछ उठ रहा, कर लेता अनुमान।।
द्वैत भले हो देहगत, एहसासी एकत्व ।
अद्वैती है प्रेम रस, या फिर कहे ममत्व।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार दोहे, बधाई