॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (1-2) ॥ ☆
तनप्रात में उस नृपति ने गुरू-धेनु को वन गमन हेतु घर से निकाला
था वत्स जिसका बँधा दूध पी, जिसे रानी ने पहनाई थी पूजमाला ॥1॥
उसके खुन्यास से पावनी धुलि का अनुगमन तब किया पतिव्रताने
वन मार्ग राजरानी ने जैसे कि श्रुति अनुसरण किया स्मृति, दृढव्रताने ॥2॥
निश्चिंत सुस्वरूप दयालु राजा ने नंदिनी की सुरक्षा सम्हाली
गोरूप धारिणि धरा सी सुशोभित जो थी चार सागर स्तन ऐनवाली ॥3॥
व्रत हेतु उस धेनु अनुयायि ने आत्म अनुयायियों को नवन साथ लाया
अपनी सुरक्षा स्वतः कर सके हर मनुज इस तरह से गया है बनाया ॥4॥
खिला के हरी घास, तन को खुजा के औं वनमक्षिका दे शनों से बचा के
थे सम्राट सेवा निरंतनंदिनी की, जो चरती थी स्वच्छन्द बे रोक जाके॥5॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈