प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित विशेष कविता “गीता“। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 42 ☆ गीता ☆
श्री कृष्ण का संसार को वरदान है गीता
निष्काम कर्म का बडा गुणगान है गीता
दुख के महासागर मे जो मन डूब गया हो
अवसाद की लहरो मे उलझ ऊब गया हो
तब भूल भुलैया मे सही राह दिखाने
कर्तव्य के सत्कर्म से सुख शांति दिलाने
संजीवनी है , एक रामबाण है गीता
पावन पवित्र भावो का संधान है गीता
है धर्म का क्या मर्म , कब करना क्या सही है
जीवन मे व्यक्ति क्या करे गीता मे यही है
पर जग के वे व्यवहार जो जाते न सहे हैं
हर काल हर मनुष्य को बस छलते ही रहे हैं
आध्यात्मिक उत्थान का विज्ञान है गीता
करती हर एक भक्त का कल्याण है गीता
है शब्द सरल अर्थ मगर भावप्रवण है
ले जाते हैं जो बुद्धि को गहराई गहन में
ऐसा न कहीं विश्व मे कोई ग्रंथ है दूजा
आदर से जिसकी होती है हर देश मे पूजा
भारत के दृष्टिकोण की पहचान है गीता
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈