॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (26-30) ॥ ☆

 

तब दूसरे दिन मुनि धेनु ने आत्म अनुचार नृपति का हृदय ज्ञात करने

गंगा पुलिन पै घनी घास से युक्त हितगिरि गुफा में घुसी घास चरने ॥26॥

 

निश्चिंत वन हिंस पशु आक्रमण से जब अद्रिशोभा निरखने लगे नृप

सहसा कोई सिंह बिलकुल अलक्षिंत आ घेर बैठा उस धेनु को तब ॥27॥

 

सुन अतिक्रन्दन उसका गुफा सें हो प्रतिध्वनि तब पड़ा जो सुनाई

पर्वत शिखर पर पड़ी दृष्टि नृप की सरल रश्मि सी तब तुरंत लौटआई ॥28॥

 

उस पाटला धेनु पर नख गड़ाये, देखा नृपति ने खड़े केसरी को

जैसे कि गैरिक वरन आद्रतट पर प्रफुल्लित खड़ा सा कोई लोध्र दु्रम हो ॥29॥

 

तब वध्य उस सिंह को मारने हेतु रक्षक नृपति, शत्रु जिसने उजाड़े

लखकर पराभूत सहस्त स्वतः को तूणीर से बाण चाहा निकाले ॥30॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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डॉ भावना शुक्ल

बेहतरीन अभिव्यक्ति