सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “बुद्ध बनना”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 86 ☆
☆ बुद्ध बनना ☆
एक आधा-अधूरा भंवर घूम रहा है
दिल-ओ-ज़हन में,
न जाने कब से,
न जाने कैसे,
न जाने क्यों…
मैं बन जाना चाहती हूँ एक बुद्ध!
प्राप्त कर लेना चाहती हूँ
परम शान्ति इसी जनम में-
एक ऐसा सुकून जो न किसी के आने से आए,
न किसी के जाने से चला जाए,
बस…ठहरा रहे मेरे मन में
किसी सीमा के बिना…
अपने मन के अन्दर
न जाने कितनी यात्रा कर चुकी हूँ,
न जाने कितनी बार विचलित होते मन को
शांत कर चुकी हूँ-
शायद मैं बन गयी हूँ वो रेत
जो समंदर की लहरों के आने से
भीग तो जाती हैं,
पर फिर अपने स्वरुप में वापस आ जाती हैं,
शांत और ठहरा हुई!
नहीं जानती कि यह आधा-अधूरा भंवर
मुझे किस ओर ले जाएगा,
पर जो भी होगा अच्छा ही होगा-
हो सकता है अभी नहीं तो कभी न कभी
मैं बुद्ध बन ही जाऊं!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈