श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “सत्तर से एक कम!”)
☆ कविता ☆ सत्तर से एक कम! ☆ श्री सुरेश पटवा ☆
हाँ थोड़ा थक सा जाता हूँ
दूर निकलना छोड़ दिया,
पर ऐसा भी नही हैं कि
मैंने चलना ही छोड़ दिया।
फासलें अक्सर रिश्तों में
अजीब सी दूरियां बढ़ा देते हैं,
पर ऐसा नही हैं कि मैंने
अपनों से मिलना छोड़ दिया।
हाँ जरा अकेला महसूस करता हूँ
अपनों की ही भीड़ में,
पर ऐसा भी नहीं है कि मैंने
अपनापन ही छोड़ दिया।
याद तो करता हूँ अब भी
मैं सभी को और परवाह भी,
पर कितनी करता हूँ
बस! ये बताना छोड़ दिया ।
हाँ! उस मंजर की कसक बाकी है अभी,
जब बारिश में साथ भीगते थे कभी,
पर ऐसा भी नही है कि मैंने
बारिश में भीगना ही छोड़ दिया |
हाँ! याद तो आती है वस्ल की रातें,
जब तनहा होता हूँ कभी,
पर ऐसा भी नहीं कि मैंने,
ख़्वाब देखना ही छोड़ दिया ।
ठोकरें खाई हैं ऊबड़ खाबड़ राहों पर
एक कम सत्तर तक आते-आते
पर ऐसा भी नहीं कि
शतायु का ख़्वाब छोड़ दिया है।
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈