(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता संतुलन। इस विचारणीय विमर्श के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 114 ☆
कविता – संतुलन
संतुलन ही तो है
जीवन
समय के पहिये पर
भागम भाग के कांटे
जरा चूक हुई
और गिरे
पार करना है
अकेले
जन्म और जीवन की पूर्णता
के बीच बंधी रस्सी
अपने कौशल से
जो इस सफर को
मुस्कुरा कर
बुद्धिमत्ता से पूरा कर लेते हैं
उनके लिए
तालियां बजाती है दुनिया
उनकी मिसाल दी जाती है
और
जो बीच सफर में
लुढ़क जाते हैं
असफल
वे भुला दिए जाते हैं जल्दी ही ।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈