आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताeह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आचार्य जी द्वारा रचित ‘सलिल – दोहे’। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 59 ☆
☆ सलिल दोहे ☆
*
सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।
चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।
*
अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।
मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।
*
उठे, बरस, बह फिर उठे, यही ‘सलिल’ की रीत।
दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।
*
स्नेह संतुलन साधकर, ‘सलिल’ धरा को सींच।
बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।
*
क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।
गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।
*
जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।
व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।
*
नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।
‘सलिल’ प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।
*
हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।
सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।
*
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,
चलभाष: ९४२५१८३२४४ ईमेल: [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈