श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “हरि इच्छा के आगे ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 69 – हरि इच्छा के आगे

उम्मीदों का टोकरा लेकर पार्टी में पहुँचे हुए साहब ने देखा कि यहाँ उनकी पूछ- परख कम हो रही है । हमेशा मंच पर बैठने वाले आज दर्शक दीर्घा में बैठकर तालियाँ बजा रहे थे । किसी तरह इस कार्यक्रम को बीतने दो तो आयोजकों की खबर लेता हूँ । वे मन ही मन कहे जा रहे थे कि इतना खर्च कर के आया हूँ, न कोई ढंग का फोटोसेशन न ही मीडिया कवरेज , लगता है खुद ही आगे बढ़कर मोर्चा संभालना होगा ।

सो साहब जी सबकी ओर देखकर मुस्कुराते हुए आगे आकर बोले , आप सबको आनन्दित होते हुए देखना सचमुच सुखकारी लगता है । मैंने तो आज नए लोगों को मौका दिया है, वे अपनी योजनाओं से अवगत करावें । जहाँ जरूरत होगी वहाँ मैं सहयोग को हाजिर हो जाऊँगा ।

जोरदार तालियाँ बजीं, सबसे अधिक मंचासीन लोगों ने बजाई । कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मनोहर जी ने उन्हें ससम्मान ऊपर बुलाया अब वे भी अपने को विशिष्ट मान रहे थे । दरसल इस तरह के आयोजनों में मुख्य परिचर्चा तो कम ही होती है, सभी लोग केवल अपनी गोटियाँ फिट करने की फिराक में ज्यादा दिखाई देते हैं । पुरस्कारों का लेन देन तो आम बात है किंतु आपसी अचार व्यवहार में कितना सम्मान किसे मिला ये भी नोटिस किया जाता है । जब सिक्का बदलता है तो हिसाब बराबर का होते देर नहीं लगती है ।

लोग क्या कहेंगे इस पर तो हम अपने आपको चलाते ही हैं पर आजकल नए- नए मुद्दे भी इसमें शामिल होते जा रहे हैं । बाकायदा  इवेंट मैनेजर रखा जाता है जिसे सब पहले से ही पता होता है कि कैसा क्या होगा । जिससे रिश्ता बनाकर रखना होता है उसे सबसे पहले और अन्य को उनकी उपयोगिता के आधार पर रखा जाता है । मजे की बात यहाँ उम्र आड़े नहीं आती है बस स्वार्थ सिद्ध होने से मतलब है । वैसे  हम लोग तो प्राचीन काल से ही कर्मयोगी रहे हैं । मैं से दूर होकर कर्म करो, कर्ता बनने की भूल मत करना ये हमें सिखाया गया है । सो हरि इच्छा का जाप करते हुए हमेशा स्थिति के अनुरूप ढल जाने में ही समझदारी दिखती है ।

उम्मीद कायम है …

किसी घटनाक्रम में जब हम सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान देते हैं तो स्वतः ही सब कुछ अच्छा होता जाता है। वहीं नकारात्मक देखने पर खराब असर हमारे मनोमस्तिष्क पर पड़ता है।

अभावों के बीच ही भाव जाग्रत होते हैं। जब कुछ पाने की चाह बलवती हो तो व्यक्ति अपने परिश्रम की मात्रा को और बढ़ा देता और जुट जाता है लक्ष्य प्राप्ति की ओर। ऐसा कहना एक महान विचारक का है। आजकल सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा  वीडियो इन्हीं विचारों से भरे हुए होते हैं। जिसे देखो वही इन्हें सुनकर अपनी जीवनशैली बदलने की धुन में लगा हुआ है। बात इतने पर आकर रुक जाती तो भी कोई बात नहीं थी लोग तो सशुल्क कक्षाएँ  भी चला रहे हैं। जिनकी फीस आम आदमी के बस की बात नहीं होती है क्योंकि इन्हें देखने वाले वही लोग होते हैं जो केवल टाइम पास के लिए इन्हें देखते हैं। दरसल चार लोगों के बीच बैठने पर ये मुद्दा काफी काम आता है कि मैं तो इन लोगों के वीडियो देखकर बहुत प्रभावित हो रहा हूँ। अब मैं भी अपना ब्लॉग/यू ट्यूब चैनल बनाकर उसे बूस्ट पोस्ट करूंगा  और देखते ही देखते  सारे जगत में प्रसिद्ध हो जाऊँगा।

इतने लुभावने वीडियो होते हैं कि बस कल्पनाओं में खोकर सब कुछ मिल जाता है। जब इन सबसे मन हटा तो सेलिब्रिटी के ब्लॉग देखने लगते हैं बस उनकी दुनिया से खुद को जोड़ते हुए आदर्शवाद की खोखली बातों में उलझकर पूरा दिन बीत जाता है। कभी – कभी मन कह उठता है कि देखो ये लोग कैसे मिलजुल एक दूसरे के ब्लॉग में सहयोग कर रहे हैं। परिवार के चार सदस्य और चारों के अलग-अलग ब्लॉग। एक ही चीज चार बार विभिन्न तरीके से प्रस्तुत करना तो कोई इन सबसे सीखे। सबको लाइक और सब्सक्राइब करते हुए पूरा आनन्द मिल जाता है। मजे की बात,  जब डायरी लिखने बैठो तो समझ में आता है कि सारा समय तो इन्हीं कथाकथित महान लोगों को समझने में बिता दिया है। सो उदास मन से खुद को सॉरी कहते हुए अगले दिन की टू डू लिस्ट बनाकर फिर सो जाते हैं। 

बस इसी  उधेड़बुन में पूरा दिन तो क्या पूरा साल कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चल बीतता जा रहा है। हाँ कुछ अच्छा हो रहा है तो वो ये कि मन सकारात्मक रहता है और एक उम्मीद आकर धीरे से कानों में कह जाती है कि धीरज रखो समय आने पर तुम्हारे दिन भी बदलेंगे और तुम भी मोटिवेशनल स्पीकर बनकर यू ट्यूब की बेताज बादशाह बन चमकोगे।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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