श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक भावप्रवण एवं विचारणीय कविता “#कतरनें #”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #89 ☆ कतरनें ☆
१ –अनुरोध–
फुटपाथों की दुकानों पर टंगे,
गद्दों रजाइयों के खोल।
तकियों के गिलाफ,
और बच्चों के कपड़े।
मुझे बुला रहे थे,
अपनी राम कहानी सुना रहे थे।
मुझे देखो टुकड़ों के रूप में,
आपस मे मिला हूं।
सही है सुइ की चुभन और पीड़ा,
कपड़ों के रूप में सिला हूं ।।१।।
२–मोलभाव–
उनके रूप में कोई न था आकर्षण,
पर आग्रह में छलकी थी अपार वेदनायें।
किसी ने उनको हिकारत से देखा,
किसी ने अपनी जरूरत से देखा।
लोग आते रहे लोग जाते रहे,
मोल करते रहे भाव खाते रहे।
अचानक से कपड़े बोल पड़े,
ओ बाबू जी आप क्यूं है खडे़ ।।
३–आग्रह–
मुझे खरीद लो तुम्हारे न सही,
नौकर के काम आ सकता हूं।
उसके बिस्तर की शान बढ़ा सकता हूं,
उसकी जरूरतें पूरी कर सकताहूं ।
अभी भी इन कतरनों में जान है बाकी,
आपकी चुकाई कीमत अदा कर सकता हूं।,
४–हकीकत–
मेरी जरूरत देखो मेरी बातें सुनो,
मेरे बिकने की बारी हकीकत सुनो।
मुझमें चश्में के पीछे से झांकती,
किसी बूढ़ी आंखों का सपना है।
किसी सेवा की जरूरत का सहारा है,
किसी भूखे बूढ़े के भोजन की थाली है।
छोटे छोटे बच्चों की टाफियां है,
और उनके खिलौने हैं।।
५–कौतूहल–
मैं ब्रांडेड कंपनी का उत्पाद नहीं,
सहायता समूहों की उपज हूं।
मैं बेसहारों की आस हूं ,
उनकी कामयाबी का बिश्वास हूं ।
मै गरीबों की जरूरते हूं ,
आप का कौतूहल हूं।।
आओ आओ खरीद लो,
ले चलो अपने घर।।
६–सपना रूठ जायेगा–
ओ बाबू मेरी बात का ऐतबार करो,
अगर खरीद न सको तो
रूको देखो थोड़ा सा प्यार करो।
मैं बिश्वास दिलाता हूं उनके सपने सजाऊंगा,
अगर आपके नौकर ने नहीं स्वीकारा तो,
दान देने के काम आऊंगा।
वरना मेरा दिल टूट जायेगा,
सैकड़ों बेसहारों का सपना रूठ जायेगा।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈