॥ श्री रघुवंशम् ॥
॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’॥
☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #4 (71-75) ॥ ☆
अश्व घरों की धूल से उठते शिखर समान
बढ़ – चढ़ हिमगिरि पै किया रघु ने पुनः प्रयाण ॥ 71॥
गिरि गहर में रह रहें सिंहों ने तब ताक
समबल सेना रव भी सुन रहे दुबक निष्पाप ॥ 72॥
भोजपत्र औं बाँस में भरता स्वर संगीत
गंगाजल-शीतल पवन रघु का था पथीमत ॥ 73॥
बैठे कस्तूरी मृगों की थी जहाँ सुगन्ध
सैनिक रूके नमेरू तल देख शिला के खण्ड ॥ 74॥
कण्ठ श्रृखला गजों की जैसे ज्योति लतायें
चमकी ओषधि स्पर्श पा ऊॅचे तरू की छाँह ॥ 75॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈