श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “चिंतन परक”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 70 – चिंतन परक ☆
हमारे हर निर्णय, अवलोकन ,लेखन, सरोकार व सब कुछ जो हम करते हैं, पूर्वाग्रह से आधारित होते हैं। ग्रह और नक्षत्रों के बारे में तो हम सभी जानते हैं और उनसे प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह पाते हैं किंतु इस पहले से निर्धारित किए हुए विचारों क्या करें…?
अधिकांश लोग ये मानते हैं कि फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाला, सूट बूट टाई पहने हुए व्यक्ति ही नौकरशाह हो सकता है। इसी तरह कारपोरेट सेक्टर में अंग्रेजी पहनावा ही सभ्य होने की निशानी है। महिलाओं की तो बात ही निराली है उनके लिए भी ड्रेस कोड निर्धारित कर दिए गए हैं। आमजीवन में मिली जुली बोली, नई वेश भूषा तेजी के साथ बढ़ रही है। मौसम के अनरूप न होने पर भी हम लोग विदेशी परिधानों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। सुशिक्षित होने की इस निशानी को ढोते हुए हम इक्कीसवीं सदी के तकनीकी ज्ञान से प्रशिक्षित लोग बिना सोचे समझे भेड़ चाल के अनुगामी बनें जा रहे हैं। अब हमारा मन धरती पर नहीं चाँद और मंगल पर लगने लगा है। तरक्की होना अच्छी बात है किंतु देश काल की सीमाओं से परे जा, हवाई उड़ानें, विदेशी धरती, उनका पहनावा और अंतरराष्ट्रीय बोलियाँ ही मन भावन लगने लगें तब थोड़ा ठहर कर ध्यान तो देना ही चाहिए।
मजे की बात है कि घर में माता- पिता का कहना हम लोग भले ही न मानते हों किन्तु काउंसलिंग करवाकर हर निर्णय लेना लाभकारी होता है इसकी जड़ें हमारे मनोमस्तिष्क में गहरी पैठ बनाए हुए हैं। पहले लोग ये मानते थे कि कोई प्रेम पूर्वक आग्रह करे तो उसका न्योता नहीं ठुकराना चाहिए परंतु अब तो सारी परिभाषाएँ एक एजेंडे के तहत पहले से ही निर्धारित कर दी जाती हैं। किसे आगे बढ़ाना है, किसे घटाना है सब कुछ सोची समझी चाल के तहत होता है। वैसे भी किसी को मिटाना हो तो उसके संस्कारों व नैतिक मूल्यों पर प्रहार करना चाहिए ऐसा पूर्वकाल से आतताइयों द्वारा किया जाता रहा है क्योंकि वे जानते हैं कि किसी को लंबे समय तक गुलाम बनाने हेतु ऐसा करना होगा।
खैर हम सब चिन्तन प्रधान देश के सुधी नागरिक हैं जो अपना भला- बुरा अच्छी तरह समझते हैं। सो पूर्वाग्रह न पालते हुए सही गलत का निर्णय स्वविवेक व तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप करते हैं।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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