प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “अटपटे परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 47 ☆ अटपटे परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम ☆
जहां के वातावरण में घुली रहती व्यंग्य भाषा
चोटें ही करती है स्वागत स्नेह की संभव न आशा
बजा करते फिर वही गाने जमाने के पुराने
रास्ते संकरे हैं इतने कठिन होता निकल पाने
ऐसे तो परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम
सांस ले सकने को समुचित वायु मिल पाती है कम
जहां जाके कभी मन की बातें कोई कह ना पाता
बात कब क्या मोड़ ले यह समझ में कुछ भी ना आता
सशंकित रहती है सांसे कब बजे कोई नया स्वर
कब उठे आंधी कभी कोई या दिखे मुस्कान मुंह पर
ऐसे तो परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम
सांस ले सकने को समुचित वायु मिल पाती है कम
सही बातें होने पर भी कब सहज आयें उबालें
या पुरानी गठरियों से बातें नई जाएं निकाले
या कि फिर अभिमान के अंगार नए कोई सुलग जांए
उचित शब्दों के भी कोई अर्थ उल्टे समजें जायें
ऐसे तो परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम
सांस ले सकने को समुचित वायु मिल पाती है कम
अनिश्चित व्यवहार का रहता जहां डर व्याप्त मन में
बेतुकी बातों का है भंडार जहां अटपट वचन में
अप्रसांगित बातों में जहां हाँ में हाँ को न मिलायें
तो अकारण क्रोध का भाजन उसे जाया बनाये
ऐसे तो परिवेश में सद्भाव का घुटता है दम
सांस लेने ले सकने को समुचित वायु मिल पाती है कम
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈