सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “सुकून”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 92 ☆
☆ सुकून ☆
जाने कहाँ खो गया सुकून है?
यह कैसी ख़ामोशी है
जो माहौल में अमावस बन छायी है?
वक़्त ने भी जाने क्यों
ले ली अंगडाई है?
कहाँ गया वो दिल का जुनून है?
जाने कहाँ खो गया सुकून है?
आँखों में जाने कैसे अब्र हैं
जो झूमते भी नहीं और बरसते भी नहीं?
ज़हन में जाने कैसी हलचल है
कोई भी मंज़र इसे जंचते ही नहीं…
यह डूबता हुआ सूरज जाने कैसा शगुन है?
जाने कहाँ खो गया सुकून है?
ऐ उड़ते हुए परिंदे
तुमने न जाने क्या ठानी है?
यह उड़ना तुम्हारा…यही तो…
हमारी मौजूदगी की निशानी है…
बजने लगी तुमको देख मेरे भी दिल में गुनगुन है…
बस करीब आने ही वाला सुकून है…
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈