श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “फुर्सत”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 90 ☆
☆ लघुकथा — फुर्सत ☆
पत्नी बोले जा रही थी। कभी विद्यालय की बातें और कभी पड़ोसन की बातें। पति ‘हां- हां’ कह रहा था। तभी पत्नी ने कहा, ” बेसन की मिर्ची बना लूं?” पति ने ‘हां’ में गर्दन हिला दी।
” मैं क्या कह रही हूं? सुन रहे हो?” पत्नी मोबाइल में देखते हुए कह रही थी।
पति उसी की ओर एकटक देखे जा रहे थे ।
तभी पत्नी ने कहा, ” तुम्हें मेरे लिए फुर्सत कहां है ? बस, मोबाइल में ही घुसे रहते हो।”
पति ने फिर गर्दन ‘हां’ में हिला दी । तभी पत्नी ने चिल्ला कर कहा, ” मेरी बात सुनने की फुर्सत है आपको ?” कहते हुए पति की ओर देखा।
पति अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
11-01-21
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