श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
?️ विजयादशमी ?️
देह में विराजता है परमात्मा का पावन अंश। देहधारी पर निर्भर करता है कि वह परमात्मा के इस अंश का सद्कर्मों से विस्तार करे या दुष्कृत्यों से मलीन करे। परमात्मा से परमात्मा की यात्रा का प्रतीक हैं श्रीराम। परमात्मा से पापात्मा की यात्रा का प्रतीक है रावण।
आज के दिन श्रीराम ने रावण पर विजय पाई थी। माँ दुर्गा ने महिषासुर का मर्दन किया था।भीतर की दुष्प्रवृत्तियों के मर्दन और सद्प्रवृत्तियों के विजयी गर्जन के लिए मनाएँ विजयादशमी।
त्योहारों में पारंपरिकता, सादगी और पर्यावरणस्नेही भाव का आविर्भाव रहे। अगली पीढ़ी को त्योहार का महत्व बताएँ, त्योहार सपरिवार मनाएँ।
विजयादशमी की हृदय से बधाई।
संजय भारद्वाज ?
संजय दृष्टि – विश्व दृष्टि दिव्यांग दिवस विशेष – चेतन, यह तुम्हारे लिए है!
आज 15 अक्टूबर अर्थात विश्व दृष्टि दिव्यांग दिवस है। इस संदर्भ में सितम्बर 2018 की एक घटना याद आती है। अहमदनगर के न्यू आर्टस्-साइंस-कॉमर्स कॉलेज में हिंदी दिवस के अतिथि के रूप में आमंत्रित था। व्याख्यान के साथ काव्यपाठ भी हुआ।
कार्यक्रम के बाद एक दृष्टि दिव्यांग छात्र चेतन और उसका मित्र मिलने आए। चेतन ने जानना चाहा कि क्या मेरी कविताएँ ऑडियो बुक के रूप में उपलब्ध हैं? उसके एक वाक्य ने बींध दिया, “सर बहुत पढ़ना चाहता हूँ पर हम लोगों के लिए बहुत कम ऑडियो बुक उपलब्ध हैं। ऑडियो के माध्यम से गुलज़ार साहब की कविताएँ सुनी-पढ़ी। …..आपकी कविताएँ सुनना-पढ़ना चाहता हूँ।”
तभी मन बनाया कि यथासंभव इस पर काम करुँगा। पहले चरण के रूप में 23 सितम्बर 2018 को दृष्टि दिव्यांगों पर एक कविता रेकॉर्ड की। बाद में तो सिलसिला चल पड़ा। कविता, अध्यात्म एवं अन्यान्य विषयों पर अनेक ऑडियो-वीडियो रेकॉर्ड किए।
‘दिव्यांग’ शीर्षक की कविता मित्रों के साथ साझा कर रहा हूँ। इस कविता के कुछ अंश सातवीं कक्षा की ‘बालभारती’ की में सम्मिलित किये गये हैं।
विशेष उल्लेख इसलिए कि इसे जारी करते समय कलम ने लिखा था, चेतन, यह तुम्हारे लिए है।…आज दोहराता हूँ, चेतन यह तुम्हारे लिए था, है और रहेगा।
यूट्यूब लिंक – >> चेतन, यह तुम्हारे लिए है! कविता – ‘दिव्यांग’
साथ ही विनम्रता से कहना चाहता हूँ, हम आँखवालों का कर्तव्य है कि अपनी दृष्टि की परिधि में दृष्टि दिव्यांगों को भी सम्मिलित करें।
– संजय भारद्वाज
दिव्यांग
आँखें,
जिन्होंने देखे नहीं
कभी उजाले,
कैसे बुनती होंगी
आकृतियाँ-
भवन, झोपड़ी,
सड़क, फुटपाथ,
कार, दुपहिया,
चूल्हा, आग,
बादल, बारिश,
पेड़, घास,
धरती, आकाश
दैहिक या
प्राकृतिक सौंदर्य की?
‘रंग’ शब्द से
कौनसे चित्र
बनते होंगे
मन के दृष्टिपटल पर?
भूकम्प से
कैसा विनाश चितरता होगा?
बाढ़ की परिभाषा क्या होगी?
इंजेक्शन लगने के पूर्व,
भय से आँखें मूँदने का
विकल्प क्या होगा?
आवाज़ को
घटना में बदलने का
पैमाना क्या होगा?
चूल्हे की आँच
और चिता की आग में
अंतर कैसे खोजा जाता होगा?
दृश्य या अदृश्य का
सिद्धांत कैसे समझा जाता होगा?
और तो और
ऐसी दो जोड़ी आँखें,
जब मिलती होंगी
तो भला आँखें
मिलती कैसे होंगी..?
और उनकी दुनिया में
वस्त्र पहनने के मायने,
केवल लज्जा ढकने भर के
तो नहीं होंगे…!
कुछ भी हो
इतना निश्चित है,
ये आँखें
बुन लेती हैं
अद्वैत भाव,
समरस हो जाती हैं
प्रकृति के साथ..,
सोचता हूँ
काश!
हो पाती वे आँखें भी
अद्वैत और
समरस,
जो देखती तो हैं उजाले
पर बुनती रहती हैं अँधेरे..!
© संजय भारद्वाज
(शुक्रवार 5 अगस्त 2016, प्रातः 7: 50 बजे)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुन्दर मार्मिक भावपूर्ण रचना