प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “बहा ले जाती नदी अपना ही किनारा”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा # 49 ☆गीत – मुझे नही आता है ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध ☆
लिखता तो हूँ । पर विवाद में पड़ना मुझे नही आता है
सीधी सच्ची बाते आती, गढ़ना मुझे नही आता है।
देखा है बहुतों को मैने पल-पल रंग बदलते फिर भी
मुझे प्यार अच्छा लगता है, लड़ना मुझे नहीं आता है।।
लगातार चलना आता है, अड़ना मुझे नही आता है
फल पाने औरो के तरू पर चढ़ना मुझे नही आता है।
देखा औरो की टांगे खीच स्वयं बढ़ते बहुतों को।
पर धक्के दे गिरा किसी को बढ़ना मुझे नहीं आता है।।
अपने सुख हित औरों के सुख हरना मुझे नही आता है
अपना भाग्य सजाने श्रम से डरना मुझे नहीं आता है।
देखा है देते औरों को दोष स्वयं अपनी गल्ती को
पर अपनी भूले औरों पर गढ़ना मुझे नही आता है।।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈