श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ ” मनोज साहित्य“ में आज प्रस्तुत है सजल “जग में एक सभी का ईश्वर…”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 4 – सजल – जग में एक सभी का ईश्वर … ☆
सजल
समांत-अम
पदांत-है
मात्राभार- १६
वे कहते हैं बड़ा धरम है।
आती अब तो बड़ी शरम है।।
जग में रोती है मानवता,
अब तो उस पर करो रहम है।
जीने का अधिकार सभी को,
जीवों पर अब रहो नरम है।
अंध भक्ति में डूबा मानव,
कब उबरेंगे अभी भरम है।
बने लोग आतंकी अब तो
गला काटती लाल कलम है।
जग में एक सभी का ईश्वर,
इसमें उनको बड़ा वहम है।
प्रेम शाँति बंधुत्व भाव में,
जीवन जीना बड़ा अहम है।
चलें मिसाइल हैं जनता पर,
मरता मानव बुरा करम है।
कट्टरता से नाता तोड़ें,
सभी उठाएँ नया कदम है।
© मनोज कुमार शुक्ल ” मनोज “
20 मई 2021
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