श्री कमलेश भारतीय 

जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब)  शिक्षा-  एम ए हिंदी , बी एड , प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । यादों की धरोहर हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह -एक संवाददाता की डायरी को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से  कथा संग्रह-महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता

☆ संस्मरण ☆ ‘यादों की धरोहर’  में  स्व. हरिशंकर परसाईं ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆ 

[1] साहित्यिक हास्य : परसाई का स्नेह चार्ज

हरिशंकर परसाई ने अपनी पहली पुस्तक – हंसते हैं,  रोते हैंं,  न केवल स्वयं प्रकाशित की बल्कि बेची भी । उनका समर्पण भी उतना ही दिलचस्प था – ऐसे आदमी को जिसे किताब खरीदने की आदत हो और जिसकी जेब में डेढ़ रुपया हो ।

एक मित्र ने कहा – यह क्या सूखी किताब दे रहे हो ? अरे,  कुछ सस्नेह,  सप्रेम लिखकर तो दो ।

परसाईं ने किताब ली और लिखा – भाई मायाराम सुरजन को सस्नेह दो रुपये में ।

मित्र ने कहा – किताब तो डेढ़ रुपये की है । दो रुपये क्यों ?

परसाई का जवाब – आधा रुपया स्नेह चार्ज ।

 

[2] हरिशंकर परसाई कहिन

मेरी कभी कोई महत्वाकांक्षा नहीं रही । जब पूरी तरह लेखन करने लगा तब भी कोई महत्वाकांक्षा नहीं रही । मेहनत से लिखता था । बस , यही चाहता था कि लेखन सार्थक हो । पाठक कहें कि सही है ।

मुझे मान सम्मान बहुत मिले । साहित्य अकादमी,  शिखर , मानद डाक्टरेट , प्रशस्ति पत्र  ,,,, ये सब कुछ अलमारी में बंद । कमरे में सिर्फ गजानंद माधव  मुक्तिबोध का एक चित्र । बस । सम्मान का कोई प्रदर्शन नहीं ।

 

[3] बुरा ही बुरा क्यों दिखता है 

एक आरोप मुझ पर लगाया जाता है कि मुझे बुरा ही बुरा क्यों दिखता है ? मेरी दृष्टि नकारात्मक है ।

यह कहना उसी तरह हुआ जिस डाँक्टर के बारे में कहा जाए कि उसे आदमी में रोग ही रोग दिखता है ।

हरिशंकर परसाईं का कहना था कि मैं उन लेखकों में से नहीं जो कला के नाम पर बीमार समाज पर रंग पोतकर उसे खूबसूरत बना कर पेश कर दें । वे लेखक गैर जिम्मेदार हैं । जिम्मेदार लेखक  बुराई बताएगा ही । क्योंकि वह उसे दूर करके बेहतर जीवन चाहता है । वे मुक्तिबोध की पंक्तियां गुनगुनाने लगे

जैसा जीवन है उससे बेहतर जीवन चाहिए

सारा कचरा साफ करने को मेहतर चाहिए

 ‘यादों की धरोहर’ पुस्तक में से  स्व हरिशंकर परसाई जी के साक्षात्कार के अंश

© श्री कमलेश भारतीय

पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी

1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Amrita Pandey

बहुत सुन्दर, स्मरणीय, संग्रहणीय अंश।