डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे – चाँदनी”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 103 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे – चाँदनी ☆
छिटक रही है चाँदनी, हैं पूनम की रात।
यहाँ वहाँ कहती फिरे, अपने दिल की बात।।
सजन गए परदेश को, बीते बारह मास।
तुम बिन मन लगता नहीं, कब आओगे पास।।
शरद आगमन हो गया, खिली चाँदनी रात।
ठंडक दस्तक दे रही, चली गई बरसात।।
शरद पूर्णिमा आज है, देती है सौगात।
कर लो प्रभु से वंदना, कह लो अपनी बात।।
शीतल आँखों से बहा, है निर्झर सा नीर।
मेरे मन को हो रही, देखो कैसी पीर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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सुन्दर रचना