श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – मैली चाँदनी
गैर घरों में
झाड़ू-पोछा करती,
अपने बच्चों की
फीस भरती,
परायी किचन में
चपाती सेकती,
अपनी रसोई चलाती,
जुआरी पति की
भद्दी गालियाँ सुनती,
शराबी मर्द के
लात-घूँसे खाती,
हर रात बलत्कृत होती,
फिर भी
करवा चौथ का व्रत करती!
काश चाँद औरत होता!
इन बदनसीब कालिमाओं
के जीवन में
थोड़ी चाँदनी होती…!
© संजय भारद्वाज
( 2007 की करवाचौथ के दिन रचित, कवितासंग्रह ‘योंही’)
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुन्दर रचना, भावपूर्ण अभिव्यक्ति
सही रचनाकार ! काश चाँद औरत होता तो किसी औरत के दर्द को जीता ..
उनके दर्द को बाँटता …..
बहुत अच्छी और सच्चाई अभिव्यक्त करती कविता