॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (31-35) ॥ ☆

 

तब सुनंदा ने बढ़ इंदुमति को, नवीन पुर्णेन्दु सा नृप दिखाया

जो था सुदर्शन पर शोैर्य में शत्रु कोई भी जिसको न जीत पाया ॥ 31॥

 

ये वशाल वाहु प्रशस्त छाती सुगढ़ बदन हैं अवन्तिराजा

जिन्हें चढ़ा शान पैं सूर्य सी दीप्ति दें गढ़ा है शायद स्वयंविधाता ॥ 32॥

 

प्रयाण में जिसके अग्र अश्वों की धूल नृपों सिर बैठ जाती

जो चूड़ामणि की चमकती आभा को उनकी अक्सर मलिन बनाती ॥ 33॥

 

महाकाल चंद्रभान से जो असित निशा में भी उल्लास पाता

ज्यों चंद्रिका मयी रजनि में अपनी प्रियाओं के सग खुशी मनाता ॥ 34॥

 

इस तरूण नृप सँग क्या है वरोरू । विहार करने की है कोई इच्छा

उन उपवनों में जहाँ समीरण है शिप्रा जलकण से सिक्त बहता ॥ 35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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