श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण गीतिका “हम जो समझ रहे अपना है…”। )
☆ तन्मय साहित्य #105 ☆
☆ हम जो समझ रहे अपना है… ☆
हम जो समझ रहे अपना है
केवल सपना है
मृगमरीचिकाओं के भ्रम में
नाहक तपना है।
मौज मजे हैं साज सजे हैं
रोम-रोम संगीत बजे हैं
हो उन्मुक्त व्यस्त मस्ती में
दिन निद्रा में रात जगे हैं,
यही लालसा जग के
सब स्वादों को चखना है।….
साँझ-सबेरे लगते फेरे
दायें-बायें चित्र घनेरे
कुछ हँसते गाते मुस्काते
कुछ रोते चिल्लाते चेहरे,
द्वंद मचा भीतर अब
इनसे कैसे बचना है। ….
प्रश्नचिह्न है हृदय खिन्न है
अब उदासियाँ भिन्न-भिन्न है
भ्रमित भावनाओं के सम्मुख
खड़ा स्वयं का कुटिल जिन्न है,
बीती बर्फीली यादों में
कँपते रहना है।….
शिथिल शिराएँ बादल छाए
भटकन का अब शोक मनाए
फिसल रही है उम्र हाथ से
कौन साँझ को अर्घ्य चढ़ाए,
बीते पल-छिन गिनती गिन-गिन,
मन में जपना है
मृग-मरिचिकाओं के भ्रम में
नाहक तपना है।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈