॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग #6 (61-65) ॥ ☆

 

विन्ध्याद्रि की उच्चता जिनने रोकी औं जिसने महोदधि को फिर से छोड़ा

उन महामुनि अगस्तय से पाण्ड्य नृप ने कर अश्वमेध स्नेह संबंध जोड़ा ॥ 61॥

 

पुराकाल में तृप्त लंकाधिपति ने, जन स्थान सीमा सुरक्षित बनाने

शिव से विशेषास्त्र पाये इसी पाण्ड्य से संधि की इन्द्र को भी हराने ॥ 62॥

 

पाणिग्रहण कर इसी योग्य नृप का पृथ्वी सा सागर की करधन जो धारे

दक्षिण दिशा को सपत्नी बना जो सुखद रत्नाकर की है रसना सँवारे ॥ 63॥

 

ताम्बूल वल्ली घिरे सुपारी वृक्ष, ऐला विचुम्बित अगरू तरू जहाँ हैं

वहाँ केलि हित बिछाये आस्तरण हैं तमालों की मंजुल मलय वीथिकायें ॥ 64॥

 

ये नील नीरज से श्याम नृप, तुम हो रोचना गौर शरीर वाली

बढ़ाने आपस की रूप श्शोभा, है योग धन – दामिनी का सा आली ॥ 65॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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