डॉ निशा अग्रवाल
☆ कविता – कबाड़ीवाले का बेसब्री से इंतज़ार ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆
ये कैसा जमाना आया है
ये कैसा फसाना लाया है
कबाड़ी वाले का है बेसब्री से इंतेज़ार
आये जल्दी ,आकर ले जाए फूटे बर्तन चार
टूटा फूटा ,फटा पुराना कपड़ा बर्तन सब ले जाये
बदले में चंद रुपये छुट्टे वो मुझे दे जाए।
क्या कभी ऐसा भी कोई आएगा।
जो टूटे फूटे दिल को ले जाएगा।।
मीठे बोल बदले में दे जाएगा।
जो भूली बिसरी यादों को दोहराएगा।
एक दिन कबाड़ी वाला आया,
उसकी ठेली को टूटे फूटे समान से लदाया।
जैसे ही बिखरे सामान को ठेली पर देखा मैने,
एक डुगडुगी बजाती हुई गुड़िया को पाया मैंने।
वो गुड़िया किसी के घर की बुढ़िया थी,
जो सबके दिलों को जोड़ती थी।
मैंने चंद रुपये देकर , उससे एक गुज़ारिश की,
कबाड़ीवाले से बुढ़िया को मैंने लेने की फरियाद की ।
हंसा जोर से ,और ये बोला,
क्यों चाहिए तुमको ये बहना।
मेने बोला तू सब ले ले,लेकिन ये बुढ़िया मुझको दे दे।
ये ही धन है, ये ही खुशी है
मिलेगा आशीष इसका मुझको,
हर दिन मेरी दीवाली यही है।।
आज के इंसान के लिए हर नाकाम चीज़ कबाड़ी का सामान बन गयी है।
इंसान की नज़र में बूढ़े इंसान की शून्य कीमत बन गयी है।।
© डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Nice
Bahut sunder aaj ke parideshya ko darshati rachna
Nice Writing !!!
Nisha Ji ??