श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है एक अत्यंत रोचक संस्मरण ‘बहुरूपिए से मुलाकात ….’ साथ ही आप श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की उसी बहुरुपिए से मुलाकात के अविस्मरणीय वे क्षण इस लिंक पर क्लिक कर >> बहुरुपिए से मुलाकात
☆ संस्मरण # 109 ☆ बहुरूपिए से मुलाकात …. ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆
विगत दिवस गांव जाना हुआ। आदिवासी इलाके में है हमारा पिछड़ा गांव। बाहर बैठे थे कि अचानक पुलिस वर्दी में आये एक व्यक्ति ने विसिल बजाकर डण्डा पटक दिया । हम डर से गए, पुलिस वाले ने छड़ी हमारे ऊपर घुमाई और जोर से विसिल बजा दी…..
….. साब दस रुपए निकालो! सबको अंदर कर दूंगा, मंहगाई का जमाना है, बच्चादानी बंद कर दूंगा। सच्ची पुलिस और झूठी पुलिस से मतलब नहीं,हम बहुरूपिया पुलिस के बड़े अधिकारी हैं, 52 इंच का सीना लेकर घूमते हैं, चोरों से बोलते नहीं, शरीफों को छोड़ते नहीं। थाने चलोगे कि राजीनामा करोगे…. राजीनामा भी हो जाएगा, अभी अपनी सरकार है, और हमारी सरकार की खासियत है कि अपनी सरकार में खूब बहुरुपिए भरे पड़े हैं, मुखिया सबसे बड़ा बहुरूपिया माना जाता है। साब झूठ बोलते नहीं सच को समझते नहीं, राजीनामा हो जाएगा। आश्चर्य हुआ इतने मंहगाई के जमाने में पुलिस वर्दी सिर्फ दस रुपए की डिमांड कर रही है।
हमने भी चुपचाप जेब से दस रुपए निकाल कर बढ़ा दिए।
अचानक उसकी विनम्रता पानी की तरह बह गई। हंसते हुए उसने बताया – साब बहुरुपिया प्रकाश नाथ हूं…. दमोह जिले का रहने वाला हूँ। मूलत: हम लोग नागनाथ जाति के हैं सपेरे कहलाते हैं सांप पकड़ कर उसकी पूजा करते और करवाते हैं पर सरकार ऐसा नहीं करने देती अब। हम लोग गरीबी रेखा के नीचे वाले जरूर हैं पर उसूलों वाले हैं। जीविका निर्वाह के लिए तरह-तरह के भेष धारण करना हमारा धर्म है। कभी नकली पुलिस वाला, कभी बंजारन, कभी रीछ, कभी भालू और न जाने कितने प्रकार के भेष बदलकर समाज के भेद जानने के लिए प्रयासरत रहते हैं और समाज में फैले अंधविश्वास, विसंगतियों को पकड़ कर उन्हें दूर कराने का प्रयास करते हैं। हम लोग पुलिस मित्र बनकर छुपे राज जानकर पुलिस के मार्फत समाज की बेहतरी के लिए काम करते हैं।बहुरुपिया समाज का अधिकृत पंजीकृत संगठन है जिसका हेड आफिस भोपाल में है वहां से हमें परिचय पत्र भी मिलता है। संघ की पत्रिका भी निकलती है। सियासत करने वाले बहुरुपिए नेता लोग बदमाश होते हैं पर हम लोग ईमानदार लोग हैं ,निस्वार्थ भाव से त्याग करते हुए बहुरुपिया बनकर लोगों को हंसाते और मनोरंजन करते हैं साथ ही समाज में फैली विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को जागरूक बनाते हैं।
उसने बताया कि बड़े शहरों में यही काम बड़े व्यंग्यकार करते हैं जो समाज में फैली विसंगतियों पर कटाक्ष करने के लिए लेख लिखकर छपवाते हैं और पढ़वाते हैं।
© जय प्रकाश पाण्डेय